"ऋषि दधीच की भक्ति: जब शिवभक्त ने विष्णु को भी युद्ध में रोका"





ऋषि दधीच भगवान शिव के चरणों में नतमस्तक — भगवान विष्णु की साक्षी में

ॐ नमः शिवाय 🙏

जो देवों के देव महाकाल हैं, जो अविनाशी परमपिता परमेश्वर हैं — उनके पावन चरणों में नतमस्तक होकर मैं भगवान शिव से प्रार्थना करता हूं कि इस ब्लॉग पर आने वाले समस्त शिवभक्तों का कल्याण हो।

भगवान शिव में जिनकी अपार श्रद्धा है, जो शिव से संबंधित लेखन पढ़ने व जानने में रुचि रखते हैं — प्रभु आशुतोष उन सभी के जीवन में खुशियों की वर्षा करें। उन्हें उत्तम स्वास्थ्य, धन-धान्य, वस्त्र, आभूषण एवं इच्छित वरदान प्रदान करें।


🔱 शिव भक्तों का सामर्थ्य – ऋषि दधीच की कथा

शिवपुराण में वर्णित एक प्रेरक प्रसंग है — राजा क्षुव और महर्षि दधीच के मध्य यह विवाद हुआ कि ब्राह्मण श्रेष्ठ है या क्षत्रिय।

राजा क्षुव ने क्षत्रिय को श्रेष्ठ बताया, जबकि ऋषि दधीच ने ब्राह्मण को श्रेष्ठ माना। वाद-विवाद युद्ध में बदल गया, लेकिन ऋषि दधीच भगवान शिव के परम भक्त थे और उनकी भक्ति के प्रभाव से अवध्य थे।

🌟 भगवान विष्णु का ब्राह्मण वेश में आगमन

राजा क्षुव, भगवान विष्णु के भक्त थे। वे उनकी शरण में गए और दधीच को पराजित करने हेतु सहायता मांगी। भगवान विष्णु ब्राह्मण वेश में दधीच के पास वर मांगने पहुँचे।

परंतु दधीच ने तुरंत पहचान लिया और कहा: “हे विष्णु! मैं केवल शिव को जानता हूं, उन्हीं की आराधना करता हूं, किसी और के सामने न झुकूंगा न भय खाऊंगा।”

🔥 विष्णु-दधीच युद्ध और ब्रह्मा जी का आगमन

भगवान विष्णु ने अनगिनत रूप धारण किए, गण उत्पन्न किए, युद्ध प्रारंभ हुआ। दधीच ने भी अपने तपोबल से असंख्य सैनिक उत्पन्न कर दिए। यह घमासान युद्ध तब रुका जब स्वयं ब्रह्मा जी पहुंचे और युद्ध रुकवाया।

राजा क्षुव ने दधीच से क्षमा मांगी। ऋषि दधीच ने तब भगवान विष्णु को श्राप दिया — “आपकी पराजय रुद्र (शिव) के द्वारा होगी।”

⚡ दधीच का श्राप और वीरभद्र का प्रकोप

यह श्राप तब फलीभूत हुआ जब माता सती ने आत्मदाह किया, और क्रोधित भगवान शिव ने वीरभद्र को भेजा। वीरभद्र ने समस्त देवताओं को पराजित किया। यह शिवभक्त दधीच की भक्ति का प्रताप था।


📜 निष्कर्ष:

भगवान शिव के सच्चे भक्तों की शक्ति असीम होती है। उनका ध्यान, उनकी भक्ति स्वयं ईश्वर को भी वश में कर लेती है।

यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति से बड़ा कोई अस्त्र नहीं।


⚠️ डिस्क्लेमर:

इस लेख में दी गई जानकारी/कथाएं विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, पुराणों, प्रवचनों व लोकपरंपरा पर आधारित हैं। लेख का उद्देश्य आध्यात्मिक जागरूकता व प्रेरणा देना है। किसी भी निर्णय या क्रिया से पूर्व व्यक्तिगत विवेक एवं अध्ययन आवश्यक है।


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