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Shiv Katha शिव भक्तों का सामर्थ्य

जो देवों के देव महाकाल हैं जो अविनाशी परमपिता परमेश्वर है ।

 प्रभु महाकाल के पवित्र पावन चरणों में मैं नतमस्तक होकर सभी भक्तों के कल्याण के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करता हूं, कि जो इस ब्लॉग पर आते हैं भगवान शिव के बारे में पढ़ते है ।



भगवान शिव में जिनकी अपार श्रद्धा है जो उनके बारे में लेखन को पढ़ने में रुचि रखते हैं, उनके बारे में जानने में रुचि रखते हैं,


प्रभु आशुतोष।  ऐसे सभी भक्तों का जरूर कल्याण करें, शिव अपने सच्चे भक्तों के घर में खुशियों की बरसात कर  दें, उन्हें धन-धान्य वस्त्र आभूषण सब कुछ प्रदान करें ,ऐसी मैं प्रभु महाकाल से प्रार्थना करता हूं।


जो भगवान महाकाल के  भक्त हैं उन्हें प्रभु अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करें ऐसी में भगवान चंद्रशेखर से प्रार्थना करता हूं।



जिनका मन भगवान शिव के चरणों में लगा रहता है ,जो   दिन रात भगवान शिव का ही चिंतन करते हैं , ऐसे प्रभु के भक्तों को भगवान महाकाल उनकी इच्छा अनुसार वस्तु प्रदान करें ऐसी भगवान शिव से प्रार्थना करता हूं।


शिव भक्तों का सामर्थ्य:-

शिव पुराण में कथा आती है कि जब राजा क्षुव और दधीच मे संवाद होता है कि राजा श्रेष्ठ होता है कि ब्राह्मण श्रेष्ठ होता है।


और वहां राजा क्षुव ने क्षत्रिय को श्रेष्ठ माना है ,उन्होंने तर्क दिया कि राजा जो है, हर तरह से पूजनीय होता है क्योंकि प्रजा की देखभाल करता है, 

ऋषि दधीच ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया उन्होंने कहा नहीं सभी में ब्राह्मण श्रेष्ठ होता है ,और इस तरह से संवाद इतना बढ़ गया कि दोनों में युद्ध प्रारंम्भ हो गया ।


महर्षि दधीच भगवान शिव के परम भक्त थे। और उनकी भक्ति के प्रभाव से वह अवध्य थे।


भगवान विष्णु का ब्राह्मण का वेश धारण करके ऋषि दधीच के पास जाना:-


राजा क्षुव ,भगवान विष्णु के परम भक्त थे । तो भी ऋषि दधीच से जीत नहीं पाए, तो उन्होंने भगवान विष्णु के पास जाकर  प्रार्थना की हे प्रभु ,किसी भी तरह से आप मुझे  दधीच के ऊपर विजय प्राप्त करवा दीजिए ।

अपने परम प्रिय भक्त की बात को सुनकर  भक्त वत्सल भगवान विष्णु भक्त के वश में होकर राजा क्षुव  की सहायता के लिए तत्पर हो गए ,वह ऋषि दधीच के पास  ब्राह्मण का वेश धारण करके गये। और बोले हे राजा ,  मैं आपके पास वर प्राप्त  करने के लिए आया हूं, कृपया मुझे वर प्रदान करें

ऋषि दधीच  ने भगवान विष्णु को तुरंत पहचान लिया ,उन्होंने कहा कि स्वयं त्रिलोकी नाथ भगवान विष्णु मेरे द्वार  पर अपने भक्त की विजय के लिए, ब्राह्मण का वेश धारण करके आए हैं।



दधीच बोले हे ,विष्णु मैं आपको पहचान गया हूं इसलिए ब्राह्मण का वेश त्याग दीजिए और अपने वास्तविक रूप में आइये।

दधीच की बात सुनकर के भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का वेश  त्याग करके अपने वास्तविक स्वरूप को प्रकट किया, और कहा हे, ऋषिवर।   केवल आप एक बार राजा  से यह कर दीजिए कि मैं आप से डरता हूं यही वर मांगने मैं आपके पास आया हूं।


 इस पर दधीच बोले की देखिए मैं शिव भक्त हूं और मैं भगवान शिव के अलावा किसी को भी न जानता हूं न जानने की कोशिश करता हूं मेरा  संपूर्ण समय शिव आराधना में लगा रहता है ।


और भगवान शिव की कृपा से मैं पूरे ब्रह्मांड में किसी से  भी नहीं डरता हूं। इस पर भगवान विष्णु को क्रोध आ गया उन्होंने कहा कि मुझे केवल यह वर दे दीजिए। लेकिन ऋषि दाधीच नहीं माने।


विश्व दधीच का सामर्थ्य :-

ऋषि दधीच बोले हे प्रभु, मैं भगवान शिव की आराधना में 24 घंटे रहता हूं,और प्रभु के आशीर्वाद से मुझे  किसी का भी भय नहीं है ।


इसलिए मैं राजा  से यह कभी नहीं कहूंगा कि मैंने आपकी पराजय स्वीकार कर ली या आप मुझसे श्रेष्ठ हैं ,तब भगवान विष्णु यह सुनकर क्रोधित हो गए ।


उन्होंने अनगिनत भगवान विष्णु की छवि प्रस्तुत कर दी, इस पर दधीच बोले हे मायापति आप इस माया से संसार को भ्रमित कर सकते हैं परंतु ,मुझ भक्त को नहीं भगवान शिव की कृपा से मुझे भूत, भविष्य,  वर्तमान  तीनों कालों का सदैव ज्ञान रहता है। और मुझे आपकी माया केवल आभास प्रतीत होती है।


ब्रह्मा जी का प्रवेशः‌-

फिर क्रोध में आकर भगवान विष्णु ने अनेक गणो की उत्पत्ति की, और सब के सब दधीच से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए, उधर दधीच में भी अपने तपोबल से असंख्य सैनिकों की उत्पत्ति की, उन सब सैनिकों ने मिलकर के भगवान विष्णु के गणों को हरा दिया।


इस प्रकार भगवान विष्णु और दधीच में घमासान युद्ध प्रारंभ हो गया, तभी नारद ,मेरा आगमन हुआ ब्रह्मा जी बोले  हे नारद, जब मैं वहां पहुंचा, तो वहां उपस्थित सभी देवताओं ने मेरा स्वागत किया, एवं मैंने इशारे से भगवान विष्णु को युद्ध करने के लिए मना किया ।


तब तक राजा क्षुव भी आ गए, उन्होंने दधीच से हाथ जोड़कर माफी मांगी, और कहा हे ऋषि, आप श्रेष्ठ है, तब जाकर के ऋषि दधीच का क्रोध शांत हुआ।

परंतु दधीच। ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया, कि   आपकी पराजय रुद्र के द्वारा होगी, यह मेरा श्राप है ।


और वही दधीच का श्राप जो है भगवान विष्णु को लगा, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां यज्ञ में भगवान शिव का भाग न देखकर , क्रोध में आकर  आत्मदाह कर लिया। परिणाम स्वरूप भगवान शिव ने वीरभद्र को भेजा और वीरभद्र में सभी देवताओं को हरा दिया।

 यह भक्त की  भक्ति का प्रभाव था , दधीच के श्राप का ,ऐसी होती है भगवान शिव के भक्तों की महिमा।

डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों /ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह सूचना आपको प्रेषित की गई है। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना आप  तक  प्रेषित करना  है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अतिरिक्त  इस  लेख  के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठक या उपयोगकर्ता की होगी।

 

 








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