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shiv Katha हिमालय और मैना के विवाह की कथा

भगवान शिव समस्त विश्व का मंगल करें, सर्वत्र शांति का साम्राज्य हो, मानवता की विजय हो, ऐसी कामना के साथ मैं इस लेख को प्रारंभ करता हूं।




      नारद की जिज्ञासा


नारद जी ब्रह्मा जी से बोले हे, भगवन कृपया मुझे यह बताइए कि जब देवी सती ने दक्ष के यज्ञ में अपना आत्मदाह कर लिया, तो वह किस प्रकार पार्वती के रूप में प्रकट हुई ,और किस प्रकार उन्हें घोर तपस्या के द्वारा भगवान शिव की आराधना करके उनको प्रसन्न किया ?और फिर उनकी अर्धांगिनी बनी।


इस पर ब्रह्मा जी बोले हे नारद, सर्वप्रथम तुम पार्वती जी की उत्पत्ति के पहले उनकी माता मैंना के विवाह के बारे में जानो, जो की अति उत्तम और पुण्य दायक पावन कथा है। जो की कहने और सुनने वाले को परम धर्म और पुण्य की वृद्धि करती है।

समृद्धशाली हिमालय का वर्णन

ब्रह्मा जी बोले हे नारद ,उत्तर दिशा की ओर एक बहुत ही विशाल एवं समृद्ध महान पर्वत है ।जो कि हिमालय के नाम से जाना जाता है ।


 हिमालय और मैना के विवाह ,

हिमालय जो कि भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है । एवं इसमें अत्यंत दुर्लभ जड़ी बूटियों का समावेश है। तथा  यह कई प्रकार के रत्नों का भंडार है ।

और कई प्रकार की वनस्पतियाॅं यहां पाई जाती है। कई प्रकार के वन्य जीव जैसे शेर, बाघ ,भालू यहां पाये जाते हैं। यह पूर्व और पश्चिम में समुद्र में इस प्रकार स्थित है, मानो भू मंडल को मापने का कोई मापदंड हो।

हिमालय का स्थावर एवं जंगम रूप

चारों ओर से हिमालय हिम(से आच्छादित है) जो कि भगवान शिव को बहुत प्रिय है ।इसीलिए यहां पर बहुत बड़े-बड़े ऋषि, महर्षि, यहां पर तपस्या करने के लिए आते थे । 

हिमालय के दो रूप प्रसिद्ध है एक स्थावर और एक जंगम स्थावर मतलब सूक्ष्म रूप में हिमालय दिव्य रूप को धारण करके विचरण  करते हैं। एवं भौतिक रूप में हिम से आच्छादित पर्वत के रूप में रहते हैं ।

यह स्थान देवताओं को बहुत प्रिय है, और अति शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाला है ,यहाॅं बड़े-बड़े ऋषि मुनि तपस्या करने के लिए आते हैं ,और आज भी कई प्रकार की ऋषि मुनि यहाॅऺं पर तपस्यारत है 


इस हिमालय की विशेषता है कि जो भी यहां तपस्या करता है उसे जल्दी सिद्धि प्राप्त हो जाती है ।यह हिमालय का  भौतिक स्वरूप है।

विवाह की इच्छा

एक बार हिमालय के मन में  विचार उठा कि लोक कल्याण के लिए क्यों न मैं अपना विवाह कर लूं ?उनके मन के विचार को जानकर देवता लोग बड़े प्रसन्न हुए ।


और वह पितरों के पास गए और कहे आप लोग जन कल्याण और हमारे कल्याण के लिए अपनी पुत्री का विवाह हिमालय से कर दीजिए ,जिससे कि चारों तरफ शुभ ही शुभ हो।

देवताओं की विनती को सुनकर पितरों में अपनी पुत्री मैंना का विवाह हिमालय के साथ कर दिया ।विवाह बड़े धूमधाम से संपन्न हुआ, तीनों लोक में महान उत्सव मनाया गया।


अत्यंत हर्षोल्लास  से विवाह कार्यक्रम संपन्न करके हिमालय मैना के साथ अपने निवास स्थान पर लौट आए। 


तब ब्रह्मा जी बोले हे नारद अब मैं देवी मैना के श्राप के बारे में बताता हूं।

पितरों की मानस पुत्रियां 

नारद जैसा कि तुम जानते हो, मेरे पुत्र दक्ष प्रजापति की साठ कन्याएं थीं। जिनका विवाह कश्यप आदि ऋषियों के साथ हुआ था। उन्हें में सबसे बड़ी स्वधा नाम की कन्या थी। इन्हीं स्वधा की तीन पुत्रियां जो की पितरों की मानस पुत्रियां थी।

यह मानस पुत्रियां किसी गर्भ से उत्पन्न नहीं हुई थी बल्कि पितरों  के मन से उत्पन्न हुई थी।  यह तीनों देवियां परम सौभाग्य को देने वाली, एवं पुण्य की वृद्धि करने वाली हैं।


उनके नाम लेने मात्र से व्यक्ति का सौभाग्य बदल जाता है क्योंकि इन्होंने  गर्भ से जन्म नहीं लिया था, इसलिए इन्हें  अयोनिजा  कहते हैं।

ब्रह्मा जी कहते हैं, कि हे नारद, वही  पितरों की कन्याएं भगवान विष्णु का दर्शन करने के लिए श्वेत दीप पर गई जहां पर दर्शन करने के पश्चात , भगवान विष्णु ने उन्हें अपने पास ही रोक लिया, तब तक वहां पर एक  जनमानस आ पहुंचा,


 तभी वहां पर हजारों ऋषि महर्षि    चले आए ,वहां विष्णु भगवान ने सबको बैठने के लिए कहा , सभी लोग यथोचित स्थान पर बैठ गए थे ।

इतने में सत्नकुमार जो कि भगवान ब्रह्मा जी के  मानस पुत्र कहे जाते हैं। वो सभी सभा के अंदर पधारे, उनको देखकर  श्वेत द्वीप के सारे लोग उठकर खड़े हो गए।


सत्नकुमार बाल ऋषि हैं ,एवं आजीवन कुंवारे है। तथा एक ही आयु के है ,इनकी आयु कभी बढ़ती नहीं है ,और यह ऋषि बाल स्वरूप में ही  हमेशा रहते है।


चारों बालक एक ही साथ कहीं भी आते जाते हैं और इन सत्नकुमार  देवताओं की पूजा की जाती है, यह तीनों लोकों में वंदित है ।सारे देवता  इनकी पूजा आराधना करते हैं। वही सत्नकुमार भगवान विष्णु से मिलने के लिए आए ,तो उन्हें देखकर वहां उपस्थित सारे लोग खड़े हो गए ।


परंतु यह तीनों देवियां ,अपने स्थान पर ही बैठी रही, इसलिए सत्नकुमार  ने इन तीनों देवियों को श्राप दे दिया ,कि आप लोग पृथ्वी पर मनुष्य की स्त्री बन जाए, बाद में इन देवियों के क्षमा मांगने पर


 सत्नकुमार  प्रसन्न हुए तब उन्होंने कहा कि हमारे श्राप में भी लोक कल्याण छुपा हुआ था, जब आप लोग पृथ्वी पर जायेंगी तो पृथ्वी वासियों का कल्याण हो जाएगा।

तब साक्षात माता पार्वती ने मैना के यहां जन्म लिया था ,और अपनी उम्र तपस्या के द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करके मैना  सहित कैलाश धाम को चली गई थी।

इस प्रकार पितरों की दूसरी पुत्री धन्या, का विवाह राजा जनक के साथ हुआ यहां  सीता के रूप में माता लक्ष्मी जी का अवतरण  हुआ, ।


भगवान श्री राम के साथ सीता जी का विवाह हुआ,  लक्ष्मी स्वरूपा सीता जी राजा जनक एवं धन्या  के साथ अंत में    विष्णु लोक को चली गई।

इसके बाद  तीसरी कन्या कलावती के रूप में उनका विवाह वृषभानु वैश्य के साथ हुआ जिनकी पुत्री  राधा, भगवान कृष्ण के गुप्त प्रेम में बंध कर, अंत में कलावती के साथ गोलोक में गयी।

डिस्क्लेमर:-

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