Shiv Katha भगवान शिव का हिमालय पर जाकर तपस्या करना

    

भगवान शिव का हिमालय पर पदार्पण

🌸 भगवान शिव का हिमालय पर पदार्पण 🌸

भगवान शिवजी की इच्छा हुई, हिमालय पर जाकर तपस्या करने की, तो वह अपनी इच्छा पूर्ति हेतु गंगा अवतरण शिखर पर पहुंच गए। जहां देवी गंगा स्वर्ग से पदच्युत होकर प्रथम बार हिमालय शिखर पर गिरी थीं। वहीं त्रिलोकीनाथ भगवान शिव समाधि लगाने हेतु बैठ गए, साथ में नंदी तथा प्रमुख पार्षद भी थे।

⛰️ पर्वतराज हिमालय का स्वागत

भगवान शिव का आगमन सुनकर पर्वतराज हिमालय पत्र, पुष्प, फूलमाला व फल लेकर अपने सेवकों सहित वहां पहुंचे। उन्होंने देखा कि भगवान शिव समाधि में लीन हैं। उन्होंने बड़े भावपूर्वक स्वागत करते हुए कहा: "हे प्रभु, आपका मेरे शिखर पर आना मेरे जीवन का सौभाग्य है। मेरा कुल, मेरा परिवार सब धन्य हो गया।"

🕉️ भगवान शिव का उत्तर

भगवान शिव मुस्कुराए और बोले: "हे पर्वतराज, पाप नाशनी गंगा का वेग सहने से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो चुके हैं। ऋषि, देव, दानव सभी यहां तपस्या करते हैं, इसलिए मैंने तुम्हारे शिखर को तप के लिए चुना है।"

🙏 पार्वती जी की सेवा की इच्छा

हिमालय बोले: "प्रभु! मेरी पुत्री पार्वती और मैं प्रतिदिन आपके दर्शन व सेवा करना चाहते हैं।" इस पर भगवान शिव ने कहा कि पर्वतराज तो आ सकते हैं, लेकिन पार्वती को सेवा की अनुमति नहीं दी जा सकती।

🛑 भगवान शिव द्वारा पार्वती की सेवा से इंकार

भगवान शिव बोले: "पार्वती अभी युवा और मनोहर हैं। ऐसे में किसी तपस्वी के समीप रहने से तपस्या भंग हो सकती है। स्त्रियों का महात्माओं की सेवा करना शास्त्रों में निषिद्ध है। यह मैंने लोक व्यवहार की दृष्टि से कहा है।"

🌺 पार्वती जी का उत्तर और प्रकृति की व्याख्या

पार्वती जी बोलीं: "प्रभु! शक्ति के बिना पुरुष कुछ भी नहीं कर सकता। प्रकृति के बिना ब्रह्माण्ड संचालित नहीं हो सकता। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, वह भी प्रकृति की शक्ति से ही संभव है।" भगवान शिव ने समझा कि यह कथन वेदांत के अनुरूप है और लोक कल्याण हेतु पार्वती जी को माध्यम बनाकर यह शिक्षा दे रहे हैं।

✅ भगवान शिव का सेवा को स्वीकार करना

पार्वती के दृढ़ निश्चय व तर्कों को सुनकर भगवान शिव बोले: "ठीक है, पार्वती मेरी सेवा कर सकती हैं, बशर्ते वह सेवा शास्त्र सम्मत हो।"

🌼 देवी पार्वती की सेवा

इसके पश्चात पर्वतराज प्रतिदिन पार्वती को उनकी दो सहेलियों के साथ लाते। पार्वती जी स्थान की सफाई करतीं, पुष्प अर्पित करतीं, गर्म जल से उनके शरीर का मार्जन करतीं और चरण धोकर चरणामृत ग्रहण करतीं। लेकिन भगवान शिव फिर भी समाधि में लीन रहते।

"भगवान शिव ने पार्वती की सेवा को हृदय से स्वीकार किया, लेकिन वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि पार्वती का अहं गल जाए, तब वे पाणिग्रहण करें।"
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी / सामग्री विभिन्न शास्त्रों, पुराणों, प्रवचनों एवं धार्मिक स्रोतों से संकलित है। इसका उद्देश्य केवल धर्म व संस्कृति की जानकारी देना है। उपयोगकर्ता स्वयं विवेक से इसका प्रयोग करें। संवाद

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