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Shiv Katha भगवान शिव का हिमालय पर जाकर तपस्या करना

    भगवान शिव का हिमालय पर पदार्पण 

भगवान शिवजी की इच्छा हुई ,हिमालय पर  जाकर तपस्या करने की, तो वह अपनी  इच्छा पूर्ति हेतु गंगा अवतरण शिखर पर पहुंच गए।

जहां देवी गंगा स्वर्ग से पदच्युत होकर प्रथम बार हिमालय शिखर पर गिरी थी।

भगवान शिव वही पहुंच गए, साथ में नंदी तथा और भी प्रमुख पार्षद थे, वहीं पर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव समाधि लगाने हेतु बैठ गए।



पर्वत राज हिमालय का आगमन :-

भगवान शिव का आगमन सुनकर , पर्वतराज हिमालय अपने सेवकों  सहित पत्र, पुष्प ,फूलमाला एवं फल लेकर भगवान शिव के स्वागत के लिए वहां पहुंचे, वहां उन्होंने देखा , भगवान शिव समाधि  अवस्था में बैठे हैं।


तब पर्वत राज हिमालय बोले हे प्रभु,  दिन वत्सल , हे दया के महासागर , परम पूज्य करुणामय करुणानिधान, त्रिलोकीनाथ, परम कल्याणकारी जिनको बड़े-बड़े देवता और ऋषि महर्षि कठोर तपस्या करके भी नहीं देख पाते है।


वही  देवाधिदेव महादेव, स्वयं मेरे शिखर पर आए हुए हैं। मैं धन्य हुआ,मेरा जीवन सफल हो गया, मेरा परिवार धन्य हो गया, मेरा कुल धन्य हो गया, मेरे भाग्य जग गए ।


मेरे अहो भाग्य ! कि स्वयं परमात्मा मुझ पर बड़ी कृपा करके मेरे पृष्ठ भाग पर आसन लगाकर मेरे पूरे कुल का जीवन सफल कर दिया।


मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि  प्रभु ने तपस्या के लिए मेरे स्थान को चुना, यह सब कह  कर हिमालय ने कहा की प्रभु मैं आपकी सेवा करना चाहता हूं।

भगवान शिव के द्वारा हिमालय को समझाना :-

हिमालय की बात सुनकर भगवान शिव मुस्कुराए, और बोले , पाप नाशनी गंगा के निरंतर वेग एवं प्रवाह को अपने ऊपर निरंतर सहते रहने से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो चुके हैं।


हे पर्वतराज ,तुम पुण्यात्मा  हो तुम्हारे ऊपर कई प्रकार के ऋषि महर्षि, देव, दानव , गंधर्व तपस्या करते रहते हैं।


तुम्हारे पुण्यात्मा होने के  कारण ही, मैं तुम्हारे शिखर पर तपस्या के लिए आया हूं। इस पर पर्वत- राज बोले कि हे  प्रभु ,मैं चाहता हूं कि ,मैं और मेरी पुत्री  पार्वती रोज आपके दर्शन करें, और आपकी सेवा करें।


भगवान शिव बोले हे पर्वतराज ,आप तो मेरे दर्शन के लिए आ सकते हैं परंतु मैं पार्वती कों इसकी आज्ञा नहीं देख सकता।


तब पर्वत राज हिमालय ने भगवान शिव से पूछा  कि आखिर क्या बात है? कि जो आप पार्वती  को अपनी सेवा करने से मना कर रहे है।


भगवान शिव जी के द्वारा पार्वती की सेवा से इन्कार करना:-

तब भगवान शिव बोले हे पर्वत श्रेष्ठ ,पर्वतराज आपकी पुत्री अभी युवा हैं, एवं मनोहर तथा अत्यंत सुंदर हैं, ऐसी दशा में आपको अपनी पुत्री को किसी साधु, महात्मा के पास नहीं रखना चाहिए।


क्योंकि स्त्रियों को योगी के पास रहने सेे योगी का मन तपस्या से विचलित हो जाता है ,उसकी तपस्या भंग हो जाती है, उसका वैराग्य  नष्ट हो जाता है ।


इसलिए स्त्रियों का विशेष कर युवा स्त्रियों का योगियों की सेवा के लिए शास्त्रों में निषेध किया गया है ।


यह सब भगवान शिव ने लोक व्यवहार की दृष्टि से कहा था। क्योंकि  स्त्रियों के संग रहने   के कारण बड़े-बड़े साधु महात्माओं का वैराग्य भंग हो जाता है। 


यह बात प्रभु ने उन ढोंगी साधुओं को ध्यान में रखते  जनकल्याणार्थ कहीं थी।


इतना सुनकर कर पार्वती जी ने अपने पिता से आज्ञा मांग कर  भगवान शिव को प्रणाम किया, और कहने लगी कि प्रभु आपने ऐसा कैसे कह दिया?

माता पार्वती जी के द्वारा प्रकृति की व्याख्या करना :-

स्त्री के शक्ति के बिना पुरुष कुछ भी नहीं कर सकता है , क्योंकि उसकी शक्ति ही प्रकृति है। अब  बिना शक्ति के प्रभु आप कुछ भी नहीं कर सकते।


प्रकृति ने आपको। निगल लिया है, इसलिए आपको अपने स्वरूप का भान नहीं है ,तब  भगवान शिव बोले ,नहीं देवी पार्वती , मैंने तपस्या के द्वारा प्रकृति पर विजय प्राप्त ली है ।मैं  प्रकृति से परे पूर्ण परमात्मा हूं।


देवी पार्वती बोली , जब आप प्रकृति पर विजय प्राप्त कर चुके हैं? तो आप तपस्या किसलिए कर रहे है ?

आपको तपस्या करने की क्या आवश्यकता है?  और फिर प्रकृति क्या है ?

आप जो बोल रहे हैं, खा, पी रहे हैं बातें कर रहे है, यह सब प्रकृति के द्वारा ही संचालित हुआ है ।

प्रकृति सुपर ब्रह्मांड का संचालन कर रही है, उसी के शक्ति के द्वारा आप  महान तप कर रहे हैं।

भगवान शिव यह जानते थे कि,  पार्वती जी के द्वारा कहे गए  कथन वेदांत के अनुरूप हैं। प्रभु लोक कल्याण ,की दृष्टि से पार्वती जी को माध्यम बनाकर दुनिया को समझा रहे थे ।


भगवानशिव का पार्वती की सेवा को स्वीकार करना:-

पार्वती जी बोली जब आप इतनी बड़े तपस्वी है, तो  भला मेरी उपस्थिति से आपको क्या प्रभाव पड़ सकता है?

भगवान शिव मुस्कुराए ,और पर्वत राज से बोले कि  पार्वती जी सही कहती है,आप  इनके साथ रोज यहां आ सकते हैं।

 

लेकिन एक बात का ध्यान रहे, पार्वती जी के द्वारा की गई सेवा शास्त्रों के अनुसार होनी चाहिए।

देवी पार्वती जी के द्वारा शिव की सेवा:-

यह सुनकर पर्वतराज बहुत गदगद हो गए  , तथा वह रोज भगवान शिव की आज्ञा से पार्वती को उनकी दो सहेलियां के साथ लेकर आते, एवं भगवान शिव की पूजा अर्चना करते ,इस प्रकार यह क्रम लगातार चलता रहा।


पार्वती जी ,  हिमालय  के साथ भगवान शिव की सेवा के लिए अपनी दोनों सहेलियों के साथ आने लगी।


वह भगवान  शिव का सर्वप्रथम स्थान साफ करती उसके बाद उनको पत्र, पुष्प, फूल अर्पित करती ,एवं बड़ी श्रद्धा के साथ पानी में गर्म किए हुए कपड़े को निचोड़  कर उनके शरीर का मार्जन करती।


एवं उसके बाद उनकी पूजा, अर्चना करती  उसके  बाद प्रभुके चरण धोती, एवं चरणामृत लेकर   प्रभु को प्रणाम करके वापस अपने महल लौट आती।


लेकिन भगवान शिव पार्वती जीकी सेवा को देखते हुए भी अनदेखा करते थे। उनके अंदर किसी भी प्रकार का भाव उत्पन्न नहीं होता था ।वे सदैव समाधि में डूबे रहते, एवं समाधि में ही अपने प्रभु का साक्षात्कार करके आनंदित  रहा करते थे।


इस प्रकार भगवान शिव पार्वती जी की सेवा को  देखकर अत्यंत द्रवित हो उठे उन्होंने सोचा की तपश्चार्य के द्वारा जब पार्वती का अहं गल जाएगा कब जाकर मैं पार्वती का पाणिग्रहण  करूंगा।




डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों /ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह सूचना आपको प्रेषित की गई है। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना आप  तक  प्रेषित करना  है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अतिरिक्त  इस  लेख  के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठक या उपयोगकर्ता की होगी।










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