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Shiv katha

कैलाश पर  सप्त ॠषियो  का आगमन 

ब्रह्मा जी बोले हे नारद , भगवान शिव  देवताओं के आश्वासन देने के बाद  कैलाश पर्वत पर समाधि लगा कर बैठ गए।


भगवान शिव की समाधि:-

भगवान शिव जब समाधि के अंदर गए तो उन्होंने अपने ही निर्विकार ,आत्म स्वरूप, सच्चिदानंद, अत्यंत निर्मल, पूर्ण प्रकाश में स्वरूप का दर्शन किया। और उसी में मन स्थित कर  परमानंद में मग्न हो गए।

भगवान शिव अपने स्वरूप का चिंतन और मनन करने लगे ,जितना वह चिंतन करते जाते, उतनी अधिक प्रेम की अनंत धारा, उनके हृदय में उतर जाती ।

महायोगी शिव:-


समाधि के अंतिम पड़ाव पर ,प्रभु ब्रह्मानंद में लीन हो गए,ऐसा आलौकिक आनंद है, जो कि वर्णन नहीं किया जा सकता है।

और अवर्णनीय है, इसलिए इसको लिखकर नहीं बताया जा सकता ,जिसको बोलकर नहीं समझाया जा सकता ,यह तो वह आनंद है, जो केवल उसे योग के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है । और योग की सारी विद्याएं भगवान शिव से ही उत्पन्न है।
इसीलिए भगवान शिव को महायोगी कहा गया है। 


ऐसे परम आनंद को प्राप्त भगवान शिव तो ठीक है, कोई साधारण  आदमी भी ऐसा आनंद छोड़ना नहीं  चाहेगा।

कई वर्षों की उपरांत जब प्रभु की  समाधि खुली, तो एकाएक उनके समक्ष देवी पार्वती जी का चेहरा दृश्यमान हआ।

भक्त वत्सल प्रभु की करुणा जाग उठी,  मेरी भक्त , इतनी कोमल काया एवं राजकुमारी होकर भी,  महलों की सुख सुविधाओं की आदि,  संसार के सारे वैभव को ठुकराकर  अपनी कठोर तपस्या के द्वारा देवी पार्वती केवल मुझको ही पाना चाहती है ।

देवी पार्वती ने हजारों वर्ष तक तपस्या की, जिसके फलस्वरूप देवता मेरे पास आए, और मैंने उनको समझा कर विदा भी किया कि मैं पार्वती  से  ही पाणिग्रहण  करूंगा ।

और  अब  वह समय आ गया है ,भक्त को उसकी भक्ति का फल देने का , फिर भी भगवान शिव एक बार और देवी पार्वती की परीक्षा लेना चाहते थे।

सप्त ऋषियों का आव्हान :-

प्रभु ने यह सोचते ही , सप्त ऋषियों का आह्वान किया, प्रभु के आवाह्न के क्षण मात्र में सप्त ऋषि प्रभु के सम्मुख कैलाश पर्वत पर उपस्थित हो गए, एवं अपने भाग्य की सराहना करते हुए दोनों हाथों को जोड़कर महादेव जी से बोले, हे महादेव आज हमारे भाग्य उदय हो गए , स्वयं आपने हमें बुलाया है।


हे प्रभु बोलिए ,किस प्रकार हम लोग आपकी सेवा करें।  सप्त ॠषियों का वचन सुनकर महादेव मुस्कुराए और बोले, हे ऋषियों, आप लोग सत्यवादी हैं । परन्तु आप लोगों  को पार्वती जी की परीक्षा लेना है, इसलिए आप छल का सहारा लेते हुए, देवी पार्वती जी की परीक्षा लीजिए,  यही मेरा आज्ञा है।

परीक्षा लेते  समय आप लोग देवर्षि नारद की निंदा कीजिएगा, एवं मेरे बारे में   उल्टा ,सीधा बोल कर देवी पार्वती के मन को भ्रमित कीजिएगा।

इसीलिए मैंने आप सभी लोगों का आह्वान किया है अब आप लोग जाइए, और निर्देशानुसार कार्य को संपन्न कीजिए। 

सप्त ऋषियों का आशीर्वाद:-

भगवान शिव की  आज्ञा एवं निर्देशानुसार सप्त ऋषि वहां पहुंचे ,जहां की देवी कठोर तपस्या कर रही थी। उस शिखर  को, देवी की कठोर तपस्या के कारण  ही गौरी शिखर कहा जाता है।

शिखर चारों ओर से विभिन्न प्रकार के पुष्प एवं फलों के द्वारा आच्छादित था। नाना प्रकार की सुगन्धित बयार  बह रही थी। नाना प्रकार के पशु उसमें विचरण कर रहे थे।

हिरण एवं खरगोश के शावक हरी -हरी घास के मैदान में अठखेलियां खेल रहे थे।

देवी पार्वती की तपश्चार्या के कारण वहां का वातावरण अत्यंत शांत मनमोहक ,एवं दिल को प्रसन्न कर देने वाला था।

वहां के वातावरण को देखकर सप्त ऋषि बहुत ही प्रभावित हुए ,वे देवी पार्वती जी के निकट गए और कहने लगे हे देवी ,आप तो राजघराने  की कन्या मालूम पड़ती हैं ,आखिर इतनी कठोर तपस्या किस कारण से कर रही है ।

आथित्य सत्कार :-

सप्त ऋषियों को आया देख करके देवी पार्वती ने उनका आथित्य सत्कार किया ।और प्रश्न के उत्तर में बोली हे ॠषिवर ,मैं यहां भगवान शिव की तपस्या कर रहीं हूं, और उन्हीं को अपने  पति के रूप में वरण करना चाहती हूं।

दृढ़ संकल्प:-

यही मेरा दृढ़ संकल्प है, यह सब सुनकर सप्त ऋषि मुस्कुराकर बोले  हे देवी, आप शिव की तपस्या कर रही हैं। आप इतनी सुंदर हैं ,और शिव  शरीर पर भस्म रमाए  रखते हैं, गले में नागों की माला पहनते है,शमशान में रहते हैं, एवं उनके साथी विचित्र वेशभूषा वाले हैं ।


उनका, कोई अपना  निश्चित घर नहीं ,भला ऐसी वेशभूषा वाले  एवं  जो कि हमेशा योग समाधि में रहते हैं।

 भला ऐसी स्थिति में आप उनसे विवाह करके कैसे सुखी हो पाएंगी ? नारद जी ने आपकी मति में भ्रम डाल दिया है।


 नारद का काम ही है ,लोगों को दिग्भ्रमित  करना, उन्होंने कई लोगों को इस तरह  भ्रमित कर दिया है।

ओर आप देवर्षि की बात मानकर  इतनी कठोर तपस्या क्या कर रही हैं, इससे अच्छा तो यह है कि आप भगवान विष्णु तथा अन्य किसी सुंदर देवताका वरण  कर ले ।

पार्वती उवॉच:-


सप्तर्षियों  की बात सुनकर  देवी पार्वती हाथ
 जोड़कर बोली हे महर्षियों, मैंने भगवान शिव के वरण का जो संकल्प लिया है, उसे  किसी भी परिस्थिति में  पूरा करके रहूंगी।

 
आप लोग ऋषि होकर भी भगवान शिव के बारे में, ईश्वर के संबंध में इस प्रकार की बातें कर रहे हैं,  क्या आप लोग नहीं जानते कि भगवान शिव साक्षात् परमात्मा है?

परमेश्वर हैं, इस जगत के अधिष्ठाता है ,ऐसे करुणा  के सागर परमपिता परमेश्वर के बारे में यदि कोई दूसरा बोला होता , तो अब तक मैं इस आश्रम से ही निष्कासित कर देती,  परंतु आप सप्त ऋषि है। इसीलिए मेरा आप सभी से निवेदन है कि आप लोग अपने स्थान को प्रस्थान करे।


सप्त ऋषियों का देवी पार्वती को आशीर्वाद देना:-

पार्वती जी की बात सुनकर सप्त ऋषि बहुत ही  प्रसन्न  हुए ,उन्होंने कहा हे देवी, हम भगवान शिव की आज्ञा से आपकी परीक्षा लेने आए थे।

 हे देवी ,शीघ्र  ही भगवान शिव  आपको दर्शन देंगे, और आपकी मनोकामना को पूर्ण करेंगे, यही हम लोगों  का आशीर्वाद है।


यह सुनकर देवी पार्वती  ने सप्त ऋषियों को  प्रणाम किया ,   देवी पार्वती जी का अभिवादन एवं प्रणाम स्वीकार कर सप्तऋषि वापस कैलाश पर लौट आए।

डिस्क्लेमर:-

इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता/या प्रमाणिकता की पहचान नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों /ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धर्मग्रंथों/धर्म ग्रंथों से संदेश द्वारा यह सूचना आपको प्रेषित की गई है। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना आप  तक  प्रेषित करना  है। पाठक या उपयोगकर्ता को जानकारी समझ में आ जाती है। इसके अतिरिक्त  इस  लेख  के किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं पाठक या उपयोगकर्ता की होगी।



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