Shiv katha"सप्तर्षियों का कैलाश आगमन: शिव के सम्मुख सात चैतन्य स्वर"






🔱 कैलाश पर सप्त ऋषियों का आगमन

🪔 एक पौराणिक प्रसंग: तपस्या, परीक्षा और परम भक्ति की कथा


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ब्रह्मा जी बोले — हे नारद!

जब भगवान शिव ने देवताओं को यह आश्वासन दिया कि वे देवी पार्वती की भक्ति को स्वीकार करेंगे, तब उन्होंने संसार से विलग होकर, कैलाश पर्वत पर जाकर गहन समाधि लगा ली।

वह समाधि केवल ध्यान नहीं थी — वह था आत्मा का ब्रह्म से मिलन, चेतना का पूर्ण विलय, और आनंद की साक्षात अभिव्यक्ति।


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🔱 भगवान शिव की दिव्य समाधि

समाधि में प्रवेश करते ही भगवान शिव ने अपने ही निर्विकार स्वरूप, सच्चिदानंद आत्मा और शुद्ध चेतना का अनुभव किया।
उन्होंने अपने भीतर उस परिपूर्ण प्रकाश, उस पूर्ण प्रेम, उस शाश्वत तृप्ति का दर्शन किया — जो शब्दों से परे है।

उनकी समाधि एक ऐसा गूढ़ अनुभव थी, जिसमें समस्त जगत तिरोहित हो गया और केवल शुद्ध शिव शेष रह गए।


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🕉️ महायोगी शिव का ब्रह्मानंद

समाधि के अंतिम चरण में शिव ब्रह्मानंद में लीन हो गए।
यह कोई सामान्य ध्यान नहीं था —
यह वह परम स्थिति थी, जिसे ऋषि-मुनि युगों की साधना से प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

शिव तो स्वयं योग के जनक हैं —
योग की हर विद्या, हर मुद्रा, हर स्वर, उन्हीं से प्रकट होती है।
इसीलिए शास्त्रों ने उन्हें कहा है —

> "योगेश्वरः शिवः" — अर्थात् शिव ही योग के ईश्वर हैं।




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🌺 देवी पार्वती की कठोर तपस्या और शिव की करुणा

उधर, पार्वती जी ने हिमालय की कंदराओं में, वर्षों तक कठोर तपस्या की।
राजकुमारी होकर भी उन्होंने राजसी सुख-सुविधाओं का परित्याग किया और केवल शिव को अपने पति के रूप में पाने का संकल्प लिया।

जब शिव समाधि से जागे, तो उनके सम्मुख देवी पार्वती का तपस्विनी स्वरूप प्रकट हुआ।
उन्हें देख शिव का हृदय करुणा और भक्तवत्सल भाव से भर उठा।

उन्होंने सोचा —

> "मेरी यह भक्त, कोमल काया होते हुए भी, पर्वतों में तप कर रही है — केवल मुझे पाने हेतु! क्या मैं इसकी भक्ति की परीक्षा लिए बिना इसे स्वीकार कर लूं?"




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🕯️ सप्त ऋषियों का आह्वान

शिव ने सातों महान ऋषियों — सप्त ऋषियों का आह्वान किया।
क्षण मात्र में वे कैलाश पर्वत पर उपस्थित हो गए।

उन्होंने प्रभु को प्रणाम कर कहा —

> "हे महादेव! आपने हमें बुलाया, यह हमारे जीवन का परम सौभाग्य है। कृपया आज्ञा दें, हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं?"



शिव मुस्कुराए और बोले —

> "हे ऋषियों! मैं चाहता हूँ कि आप देवी पार्वती की परीक्षा लें। परंतु यह परीक्षा सीधी नहीं होगी। आपको कुछ 'छल' का प्रयोग करना होगा।"



उन्होंने स्पष्ट कहा —

> "आप नारद जी की निंदा कीजिए, मेरे बारे में नकारात्मक बातें कीजिए, और देवी के मन में संदेह उत्पन्न करने का प्रयास कीजिए।"




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🌿 गौरी शिखर: तपोभूमि का सौंदर्य

जहां देवी तप कर रही थीं, वह स्थान अब गौरी शिखर कहलाता है।
वहां का वातावरण देवी की तपस्या से पवित्र हो चुका था।

चारों ओर रंग-बिरंगे पुष्प, मीठी सुगंध, शीतल बयार, और हिरणों की अठखेलियां — ऐसा प्रतीत होता था मानो स्वयं प्रकृति भी देवी की आराधना कर रही हो।


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🙏 देवी का दृढ़ संकल्प

सप्त ऋषियों ने वहां पहुँचकर देवी से पूछा —

> "हे देवी! आप तो किसी राजकुल की कन्या प्रतीत होती हैं। फिर यह कठोर तप क्यों?"



देवी ने उत्तर दिया —

> "मैं भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हूं। यही मेरा संकल्प है।"



ऋषियों ने कहा —

> "आप इतनी सुंदर हैं, और शिव तो भस्म रमाने वाले, श्मशानवासी, नागों से भूषित, वनों में भटकने वाले योगी हैं। क्या वे आपके योग्य हैं?"



> "आप नारद जी के भ्रम में आकर तप कर रही हैं — क्यों न आप किसी सुंदर देवता जैसे विष्णु जी को वरण करें?"



यह सुनकर देवी ने अत्यंत शांत भाव से कहा —

> "हे ऋषियों! शिव ही मेरे आराध्य हैं, मेरे इष्ट हैं, मेरे प्राण हैं। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं अपने संकल्प से नहीं डिगूंगी।"



> "आप यदि ऋषि न होते, तो आपके ऐसे वचनों के लिए मैं आपको आश्रम से निष्कासित कर देती। किंतु मैं जानती हूँ — आप दिव्य आत्मा हैं।"




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सप्त ऋषियों का आशीर्वाद

देवी की अटल भक्ति, संयम, और शिवमय विश्वास को देख सप्त ऋषियों की आँखें नम हो गईं।

वे बोले —

> "हे देवी! यह केवल परीक्षा थी। हम भगवान शिव की आज्ञा से आए थे। आपने भक्ति की पराकाष्ठा प्रस्तुत की है। शीघ्र ही शिव आपको दर्शन देंगे और आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।"



देवी ने उन्हें प्रणाम किया। सप्त ऋषियों ने आशीर्वाद देकर उन्हें पुनः तपस्या में स्थित देखा और फिर कैलाश लौट गए।


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📜 Disclaimer:

> यह लेख धार्मिक मान्यताओं, पुराणों, और लोक परंपराओं पर आधारित है। इसमें वर्णित घटनाओं की ऐतिहासिक या वैज्ञानिक प्रमाणिकता का दावा नहीं किया जाता। पाठकों से अपेक्षा है कि वे इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से पढ़ें।




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🔚 समापन

यह कथा केवल एक विवाह की नहीं है —
यह है भक्ति की परीक्षा,
शिव की करुणा,
और तप के प्रतिफल की दिव्यता।


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