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Shiv Katha

शिव महिमा 

भगवान शिव ने जब पार्वती जी की परीक्षा सप्त ऋषियों के द्वारा करवायी   तो, सप्तऋषि देवी पार्वती को आशीर्वाद देकर वापस कैलाश आए और भगवान शिव को सब वृतांत कहा ।


सप्त ऋषियों से वरदान के  बारे में सुनने के बाद  देवाधिदेव महादेव ने सोचा कि मुझे अब स्वयं परीक्षा लेनी चाहिए ।

ब्राह्मण वेश धारी शिव:-

और फिर महादेव देवी पार्वती के समक्ष एक ब्राह्मण के वेश में एक हाथ में छतरी और एक हाथ में दण्ड लिए हुए वहां पहुंचे जहां देवी पार्वती कठोर तपस्या कर रही थी।



जब पार्वती जी ने देखा कि एक महान तेजस्वी ब्राह्मण उनके समक्ष पधार रहे हैं, तो वह दोनों हाथ जोड़कर खड़ी हो गई, और बोली हे ब्राह्मण देव आप तो महान तेजस्वी जान पड़ते हैं। जिनके अंग अंग से महान तेज दृश्यमान हो रहा था।


‌हे देव बताइए आप कौन हैं ? तब ब्राह्मण वेश धारी भगवान शिव बोले हे देवी, मैं एक त्यागी ब्राह्मण हूं, स्वेच्छा से चारों ओर विचरण करता हूं ,आपकी तपस्या को देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और आपके असीम तेज को देखकर  मैंने सोचा कि इस उम्र में इतना कठोर तप कर रही हैं।


हे देवी ना तो आप बालिका है और ना वृद्ध हे देवी आप इतनी सुंदर है क्या आप देवी लक्ष्मी है?  क्या आप देवी सरस्वती है ?


क्या  आपको,पति ने त्याग दिया है? या आपको आपके घर वालोंने त्याग दिया है?  देवी क्या कारण है ? क्यों आप इतनी कठोर तपस्या कर रही हैं ,

भगवान शिव का प्रश्न:-

मैं यह प्रश्न पूछता नहीं, परंतु आपका  संस्कार देखकर  एवं आपके अंदर का भाव देखकर  मैं अपने आप यह प्रश्न पूछने पर मजबूर हो गया, हे देवी आखिर वह कौन सा कारण है ?जिसके लिए आपको इस वन में इतनी कठोर तपस्या करनी पड़ रही है ।


पार्वती उवॉच:-

ब्रह्मण की बात सुनकर देवी पार्वती  बोली हे  ब्राह्मण, आप महान तेजस्वी दिखाई पड़ते हैं ,और आप साधारण ब्राह्मणों में से नहीं है, इसलिए मैं आपको बता देती हूं कि मैं न तो लक्ष्मी हूं ,न ही सरस्वती , मैं  पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती हूं शिव को पति के रूप में वरण करना चाहती हूं ।



तब ब्राह्मण वेश धारी भगवान शिव बोले  हे  देवी, यह आपका अपना व्यक्तिगत प्रश्न है, मुझे इसमें और हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है , परंतु फिर भी मैं स्वेच्छा से आकाश में विचरण करता हूं।


और मुझे वेदों का ज्ञान है। हो सकता है मेरी बातें आपके समझ में आ जाएं, तो आपका कल्याण हो जाएगा अन्यथा मैं अपने आप चला ही  जाऊंगा‌।

शिव वेशभूषा :-

ब्राह्मण वेश धारी भगवान शिव बोले हे देवी,  आप जिस शिव की तपस्या कर रही है उनके पास क्या है? और आप कहां स्वर्ण की माला धारण करती हैं, रेशमी  वस्त्र पहनती हैं। 


और वह कहां ,बाघ के चर्म ( खाल)  को धारण करने वाले, बूढ़े बैल पर सवारी करने वाले ,हाथी के चर्म  की  चादर वक्षस्थल  पर ,गले में सर्पों की माला लटकी रहती हैं।


और शमशान में निवास करते हैं।आप शरीर पर  चंदन का लेप लगाती है  वह चिता की भस्म लगाते हैं।


हे देवी, आप महलों में सोती हैं, उनका कोई घर ही नहीं है। उनका स्वरूप भी अती  विकराल है । वह पांच मुख तथा दस हाथो वाले हैं।


कहां आपका मुख चंद्र जैसा है ।देवी  आपके बाल र्सपणी की तरह  लहराते हुए से हैं, और उनके बालों का क्या कहना ! हे  देवी  उनकी तीनों आंखें विकराल दिखाई देती है।


इससे अच्छा तो यह है कि आप ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र  या अन्य किसी  देवता से विवाह  कर ले।


देवी पार्वती का क्रोध :-

जब ब्राह्मण के मुख से यह सब निकला ,तो देवी पार्वती जी का मुख क्रोध से तमतमा गया , आंखे लाल हो गयी ,


देवी पार्वती बोली , मैं तो तुझे तेजस्वी और महान समझी थी,   शिव की निंदा करने वाले का वध कर देना चाहिए ।


तू ब्राह्मण  है इसलिए अवध्य है,लेकिन  पापी, तू भगवान शिव को नहीं जानता, वह निराकार है, केवल भक्तों के प्रसन्नता के लिए साकार रूप धारण करते हैं ।


एवं सारी प्रकृति जिनके अधीन है जिनकी  पूजा पूरा संसार कर रहा है ,शिव भक्तों को,  शिव की निंदा नहीं सुनना चाहिए।


अरे मूर्ख ब्राह्मण,  तू शिव की निंदा कर रहा है , जिनके आदेश से  ब्रह्मा और विष्णु  सारे संसार का भरण -पोषण करते है ।


ऐसे प्रभु करुणानिधान , जगत पिता के  बारे में तुमको, इस तरह नहीं बोलना चाहिए , उन्हें भला विवाह की क्या जरूरत ?वे तो पूर्ण परमात्मा है।


उन्हें किसी चीज की क्या आवश्यकता? जिनकी नि:श्वास से ब्रह्म ने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया, विष्णु को संसार पालन करनेकी शक्ति मिली।

ऐसे महाप्रभु के बारे में इस प्रकार बोल रहे हो, भगवान शिव अद्भुत और निराकार हैं। केवल भक्तों के लिए उनकी खुशी के लिए साकार रूप धारण करते हैं ।

 

लीलावश ही  विचित्र  वेशभूषा  में रहते है ,लेकिन  संसारका सर्वाधिक सौंदर्य  प्रभु के चरणों में है।  उनकी वाणी इतनी गंभीर है केवल शब्द सुन ले तो आदमी कई जन्म सुनना चाहेगा ।


आवाज का मीठापन संसार के   सर्वाधिक मिठास वाले पदार्थौ  से कई गुना उत्तम है। यह जो मैं चंदन का लेप लगाती हूं,  इससे करोड़ों गुना खुशबू तो भगवान शिव के शरीर से निरंतर झरती है।


संसार की  कोई भी सुगन्ध उस सुगन्ध का सामना नहीं कर सकती, उनकी शीतलता  अतुलनीय है।


मैं तो समझी कि तुम   पहुंचे हुए महात्मा हो , मैंने तो अपनी चिता तैयार कर रखी थी। मैं इसमें   कूदने जा  रही थी। तब तक तुम आ गए और मैं रुक गई ,अब मैं  नहीं रुकूंगी मैं अपने प्राण  दे दूंगी।


और यह कहकर देवी पार्वती उस चिता में समा गई।पर घोर आश्चर्य चिता की अग्नि  ठंडी हो गई,  उनको जरा  सा जला नहीं पायी।

तब ब्राह्मण रूपधारी  शिव बोले   हे  देवी, आप       धन्य है,और उसके तुरंत बाद अत्यंत मनोहर रूप में भगवान शिव  प्रकट हुए  जिस रूप को पार्वती। रोज सपने में देखती थीं। इसलिए  लज्जावश देवी पार्वती   ने  सिर झुका लिया।

भगवान शिव बोले हे देवी, मैं  अब एक क्षण भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता ,अब तुम तुरंत मेरे साथ अभी कैलाश चलो ।


देवी पार्वती ने कहा हे प्राणनाथ,  मैं प्रकृति और  आप पुरुष , हम लोग संसार के माता - पिता हैं ।


संसार में लौकिक क्रीड़ाओं के लिए, हम लोग सगुण रूप धारण करते हैं इसलिए मेरी विनती है कि आप मेरे पिता हिमालय जी के पास जाइए, और उनसे मेरा हाथ  मांग लिजिए, जिससे कि संसार में मेरे पिता का नाम , और सम्मान बढे ।


भगवान शिव बोले हे देवी , केवल तुम्हारी बात मानकर ही तुम्हारे पिता के पास जाऊंगा ,अन्यथा  मांगना मेरे स्वभाव में ही नहीं है मेरा स्वभाव तो केवल देने का है। इतना कहकर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए।

डिस्क्लेमर:-

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