"बिंदु और चंचुला: शिव तत्त्व का रहस्य"
बिंदु और चंचुला: शिव तत्त्व का रहस्य
जब हम शिव की बात करते हैं, तो हम केवल एक देवता की नहीं, बल्कि एक विराट तत्त्व की चर्चा करते हैं — जो समय, स्थान और रूप से परे है। शिव का यह तत्त्व दो प्रमुख रूपों में अभिव्यक्त होता है: बिंदु और चंचुला। ये दोनों प्रतीकात्मक रूप से सृजन और विनाश, स्थिरता और गति, पुरुष और प्रकृति के बीच संतुलन को दर्शाते हैं।
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बिंदु – मौन का केंद्र
‘बिंदु’ शिव का निराकार, निर्गुण और शुद्ध चेतना का प्रतीक है।
यह वह मौन है जिसमें सृष्टि की उत्पत्ति होती है।
बिंदु स्थिरता है, ध्यान है, समाधि है। यह शिव का वह रूप है जो किसी भी गति से अछूता है — एकदम शांत, एकदम मौन।
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चंचुला – गति की देवी
‘चंचुला’ शक्ति का गतिशील स्वरूप है।
यह वही ऊर्जा है जो बिंदु को गति देती है।
चंचुला बिना बिंदु के अस्थिर है और बिंदु बिना चंचुला के निष्क्रिय।
यह सृष्टि की नाद (ध्वनि), गति, रचना और विस्तार का प्रतीक है — माँ शक्ति का चंचल रूप।
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शिव में दोनों का एकत्व
शिव वही हैं जहाँ बिंदु और चंचुला एकाकार होते हैं।
जहाँ मौन में गति समाहित होती है, और गति में मौन प्रकट होता है।
यह योग का सर्वोच्च बिंदु है – स्थिरता में गति और गति में स्थिरता।
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जीवन में इसका संदेश
हमारे जीवन में भी बिंदु और चंचुला का संतुलन आवश्यक है।
केवल बिंदु (मौन, ध्यान) होगा तो कर्म नहीं होगा।
केवल चंचुला (गति, व्यस्तता) होगी तो शांति नहीं होगी।
सच्चा शिव साधक वही है जो इन दोनों के बीच संतुलन बनाए।
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एक श्लोक जो इस रहस्य को उजागर करता है
> "शिवं शांतं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम्।
बिंदु चंचुलया युक्तं तं नमामि सनातनम्।"
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निष्कर्ष
बिंदु और चंचुला कोई अलग तत्व नहीं हैं।
ये शिव और शक्ति के उसी अद्वैत स्वरूप की दो दिशाएं हैं।
जब हम स्वयं के भीतर स्थिरता और ऊर्जा का संतुलन बना लेते हैं, तभी शिव हमारे भीतर प्रकट होते हैं।
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