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Shiv puja शिव एवं वेद दृष्टान्त





              शिव एवं वेद दृष्टान्त 

वेदों के अंदर इस बात का प्रतिपादन किया गया है कि भूमि, ऊऊ और पुद्य लोग समान शरीर में हैं। जिनमें अग्नि चंद्रमा और सूर्य समान पुराणों में वर्णित हैं 33 देवता भी हमारे शरीर में रहते हैं

सामवेद में बताया गया है कि मानव शरीर की उत्पत्ति और विनाशशील है।
  

अथर्ववेद के अनुसार:-


मनुष्य शरीर जो इसे पूरी अयोध्या नगरी समझ लेता है, और इस शरीर के अंदर 8 चक्र पाए जाते हैं और उसके 9 द्वार हैं और कोषों से आच्छादित हृदय कमल है।

इसी सीमित कोषों में आत्मा का निवास है। लेकिन यह केवल महायोगी, ऋषि, महर्षि, एवं ब्रह्म ज्ञान से पूर्ण व्यक्ति ही समझ सकते हैं।

 यह सामान्य लोगों के ज्ञान से परे है, सामान्य लोगों के शरीर के अंदर इसकी पहचान नहीं होगी। क्योंकि उसके लिए योग की साधना करनी पड़ती है। तब जाकर शरीर के भीतर के अंगों का ज्ञान होता है, जो पिंड में वही ब्रह्मांड में है।


ईश्वर ने मानव शरीर की रचना करते समय अपनी समस्त शक्तियों को बीज रूप में मनुष्य के अंदर भर दिया है क्योंकि ईश्वर ने अपनी पहली पवित्रता को वह सब कुछ दे दिया जो उसके पास है।

अब यहाँ उसकी सन्तोष समाप्त हो जाती है कि उसके पिता ने अनुग्रह प्राप्त किया है और जहाँ तक वह अनुदान का उपयोग कर सकता है।


इसी के लिए हमारे प्राचीन ऋषि महर्षियो ने शरीर का ज्ञान एवं साधना का पूरा विवरण शास्त्रों में दिया है। जो भी व्यक्ति लगन से इसे करते हैं उसे ईश्वर के साक्षात दर्शन हो जाते हैं एवं सभी सिद्धियो से युक्त हो जाते हैं।

यजुर्वेद के अनुसार:-




ऊँ नम: शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च
मयस्कराय च नमःशिवाय च शिव तराय च। 'ऊँ मीढुष्टम शिवतम शिवो न: सुमना भव।'(यजु॰ १६|५१)

यह जगत के रचियता भगवान का नाम भगवान शिव है,
इसका अर्थ  होता है। कल्याणकारी इसलिए सारे ब्रम्हाण्डो मे यही मनुष्य  को  सबसे अघिक  सुख एवं शान्ति  देता है,इसलिए हमारे ॠषि मुनियों ने उसे शिवतम कहा  है।
 

यजुर्वेद में कुछ ऐसे भी आते हैं जो हमारी आंखें, कान, पलकें, और हमारे शरीर की हड्डियों और शरीर की उतनी ही मर्म स्थली करते हैं। उन्हें सुदृढ के लिए उन्हें जप किया जाता है।

 यजुर्वेद के अनुसार शरीर को कैसे सुंदर बनाया जाए, कैसे इसे मजबूत बनाया जाए
इसका कितना उपयोग करें? और किस तरह से इस शरीर को ईश्वर की प्राप्ति के लिए तैयार किया जाए?यह सब बताया गया है।

शरीर की अवस्था :-

हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने हमारे शरीर की तीन अवस्था बतलाई है।

पहला मूल शरीर दूसरा सूक्ष्म शरीर और तीसरा कारण शरीर है।

मूल शरीर :-


मनुष्य का शरीर बाहर से दोष होता है, उसे हम मूल शरीर कहते हैं कि इस शरीर की भीतरी हड्डियाँ, त्वचा, मानसपेशियाँ पाई जाती हैं। और मांस पेशियों के भीतर रक्त को ले जाने के लिए छत के तंतु आते हैं जो कि रक्त वाहिनी है।

और यही मांस पेशी एवं रक्त वाहिकाओं से बना शरीर बाहर से हमें दिखता है वही मूल शरीर है।

श्री शंकराचार्य जी के अनुसार मोज़ा, अस्थि, मेद, मांस, रक्त, शुक्र और त्वचा इन सात धातुओं से निर्मित एवं हाथ, पाँव, पीठ, छाती, जाँघ, बंध, यही स्थूल शरीर के अंग हैं।

सूक्ष्म शरीर :-


यह शरीर स्थूल शरीर के अंदर पाया जाता है। यह 17 तत्वों से निर्मित होता है पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेंद्रियां, पांच प्राण, एवं मन तथा बुद्धि ही सूक्ष्म शरीर के अंतर्गत आते हैं।

स्वामी रामसुखदास जी तो सूक्ष्म शरीर को चलायमान 18 शक्तियों से बने हुए मानते हैं। सूक्ष्म शरीर जो कुछ अनुभव करता है वह स्वप्नों के माध्यम से करता है।

कारण शरीर :-


कारण शरीर संपूर्ण सूक्ष्म शरीर के भीतर व्याप्त रहता है और इसके आंकड़े भी सूक्ष्म शरीर के समान होते हैं। क्योंकि शरीर के मूल सिद्धांत हैं यदि इस शरीर का परिशोधन किया जाता है, तो मनुष्य देव के समकक्ष बन जाता है।




ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, हर हर महादेव - हर हर महादेव -, हर हर महादेव


 

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