पुनर्जन्म का सिद्धांत
पुनर्जन्म एक बहुत ही विचारक विषय है जो प्राचीन काल में पुनर्जन्म का सिद्धांत था उसके भीतर भी कई जगहों पर परदेश देखने को मान्यता मिलती है ।यह है कि यदि आपका शरीर मर जाता है तो आत्मा भी मर जाती है लेकिन कई धार्मिक मान्यता है कि केवल शरीर मरता है आत्मा नहीं मरती है आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है।यह प्रश्न इतना जटिल है कि भगवान शिव के परम भक्त नचिकेता ने मृत्यु के देवता यम से इस प्रश्न का उत्तर जानने की प्रार्थना की थी। लेकिन आजकल का विज्ञान इस बात को नहीं मानता कि आत्मा का पुनर्जन्म होता है। आज के आधुनिक वैज्ञानिक केवल शरीर के पदार्थ मनुष्य कर रहे हैं।
वेदों का सिद्धांत
वेदों के अंदर बताया गया है कि आत्मा जो है शरीर की मृत्यु के साथ मरती नहीं है। बल्की मनुष्य जब तक जीवित रहता है तब तक उसके भीतर जैसे वह कर्म करता है वह कर्म के अनुसार संस्कार हो जाता है।
और उसके अच्छे और बुरे संस्कारों के साथ यह आत्मा को उसी प्रकार का शरीर मिल जाता है यह वेद वाक्य है(वेदों में लिखा है)
ऋग्वेद के अनुसार :-
आत्मा के संबंध में बताया गया है कि यह शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है।मृत्यु के बाद यह शरीर पांच तत्वों में विलीन हो जाता है। लेकिन आत्मा बच जाती है आत्मा मरती नहीं है, और वही आत्मा (जीवात्मा) फिर से नया शरीर धारण कर लेता है।
अथर्ववेद में भी यही बात का प्रतिपादन किया गया है क्योंकि जीवात्मा के पिछले तेरह भी जन्म हुए हैं, उसमें उन्होंने जो पाप और पुण्य किए हैं। उसी के अनुसार उसे नए शरीर में भोगना पड़ता है तथा उस पाप और पुण्य के अनुसार उसे नया शरीर मिल जाता है है
श्रीराम शर्मा का मत
गोत्री संस्था का अच्छा अंश श्रीराम शर्मा जी का बड़ा ही उद्बोधन प्राप्त होता है उनके अनुसार शरीर को प्राप्त करना भी एक शानदार घटना है।
क्योंकि वही जीवात्मा कोई धनी के हां पैदा होता है, कोई गरीब के घर में पैदा होता है, कोई अस्वास्थ्यकर बर्तन होता है, कोई स्वस्थ पैदा होता है, कोई बचपन में कुशाग्र बुद्धि का होता है कोई महामूर्ख होता है, इसका कोई ना कोई कारण है ।
श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार
श्रीमद्भागवत गीता भी इस तथ्य को प्रतिपादन करती है गीता के अनुसार जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है पृथ्वी पर कोई भी अमर होकर नहीं आया है सब की मृत्यु एक न एक दिन होनी है। अर्थात
पुनर्जन्म के सिद्धांत को गीता भी प्रमाणित करती है
पुनर्जन्म सिद्धांत यह है कि कई जन्मों को मिलाकर किए हुए मनुष्य अपने संस्कारों का परिमार्जन करके ईश्वर की प्राप्ति कर ले। इसीलिए उसे कई जन्मों में भटकना पड़ता है। और अपने पाप का शोधन करना पड़ता है। जब उसका शरीर निष्पाप एवं शुद्ध हो जाता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है एवं जन्म मृत्यु के बंधन से छुटकारा मिल जाता है।
मान लीजिए कि कोई भी व्यक्ति इस जन्म में ईश्वर की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता हैं और उसकी मृत्यु हो जाती है, किसी भी शरीर मे जो उसने ईश्वर की प्राप्ति की जो चेष्टा की है वह नया शरीर धारण करने पर शरीर की अवस्था बदलने पर भी यथावत रहेगी।
यानी शरीर के अंदर बचपन ,जवानी ,एवं बुढ़ापा आया लेकिन जो आपने ईश्वर की खोज के लिए प्रयास दूसरे जन्म में किए थे ।
उससे आगे बढ़ना होगा,भले ही आप किसी भी राज्य में हो, भले ही आप बच्चे हो,जवान हो, उसके आगे आपको ईश्वर को प्राप्त करने की चेष्टा करनी होगी।एवं कई जन्मों के बाद यही आत्मा निश्चित होकर मोक्ष की प्राप्त करेंगे ।
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