विश्वव्यापी भगवान शिव
शिव की दया:-
परम दयालु , प्रभु भगवान शिव, दया के सागर है। हनुमान जी से युद्ध करते समय केवल हनुमान जी की कीर्ति को सारी दुनिया में फैलने के लिए अपने भक्त को पूरी दुनिया में वंदनीय बनाने के लिए भगवान शिव अपने भक्त से भी हार गए।
जब राजा शिवमणि के द्वारा यह कहा गया प्रभु आपने मुझे युद्ध न रोकने का वचन दिया है।
एवं भगवान श्री राम की उपस्थिति होने पर अपने इष्ट को देखकर आपने युद्ध विराम कर दिया, तब राजा शिवमणि के द्वारा उलाहना देने पर उन्होंने कहा।
हे राजन, आप राम, हनुमान और मेरे अंदर देखकर बताएं, यहां राम कहां? हनुमान कहाँ है? जब राजा शिवमणि ने भक्ति भाव से राम की ओर से देखा तो उन्हें साक्षात भगवान शिव प्रकट हुए दिखाई देते हैं, जब उन्होंने हनुमान की ओर देखा तो उनके भीतर भी भगवान शिव प्रकट हुए दिखाई देते हैं, अर्थात भगवान शिव सर्व व्यापक है ।
ऐसा ही एक प्रश्र और आता है।
जब अहिरावण राम और लक्ष्मण जी को चुराकर अपने पाताल लोक में ले गए। और वहां जब हनुमान जी भगवान श्री राम लक्ष्मण को जाग्रत होने के लिए पहुंचे, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि अहिरावण की मृत्यु बिना शिव के पंच तत्वों से पूजा किए नहीं हो पायेगी ।
अहिरावण को वही मार सकता है, जो भगवान शिव को पांच तत्वों से पूजा कर सकता है ।उस समय हनुमान जी दुविधा में पड़ गए थे कि मैं शिवलिंग लेकर आऊं क्योंकि समय बहुत कम बचा था। किसी भी समय अहिरावण आ धमकता और उसककोई मारने के लिए भगवान शिव के पंच तत्वों की पूजा करना अत्यंत आवश्यक था।
हनुमानजी की दुविधा :-
शिवलिंग जहां से लाकर इस सोच में पड़ गए, तब तक वे ध्यान में आए, भगवान शिव तो सृष्टि के काम-कण में समाए हुए हैं तब वे वही पत्थर से शिवलिंग का निर्माण और पांच तत्वों से पूजा की ।
अग्नि, वरुण, पृथ्वी, आकाश, वायु इन सभी को प्रसन्न करके उन्होंने भगवान शिव की विधिवत पांचम तत्वों से पूजा की एवं अहिरावण को मारने में सफल हुए।
श्री शंकराचार्य जी रहे ने तलवकार-उपनिषद की जो व्याख्या की थी उसमें उमा शब्द का अर्थ है ब्रह्मविद्या बताया है। उन्होंने कहा है कि शिव पार्वती का जो रूप है वह ज्ञान स्वरूप है। और हम उन्हें माता-पिता समझते हैं बच्चों के लिए माता-पिता के सुख से बढ़कर और क्या हो सकता है?परमात्मा में अपने को स्त्री और पुरुष दो रूप में प्रकट किया है।
पाणिनीय अष्टाध्यायी की रचना:-
पाणिनीय अष्टाध्यायी की रचना मे छोटे-छोटे सूत्र दिए गए हैं इस अष्टाध्यायी की रचना 14 छोटे-छोटे सूत्रों के आधार पर हुई है।
इस व्याकरण शास्त्र में एक बात को मूल रूप से दर्शाया गया है ।और उसी बात को सबसे अधिक जोर दिया गया है। हम उसी बात को मान कर चल सकते हैं, कि जो मूल मंत्र है वह यह कि मनुष्य की जितनी भी करामात हैं ,जितने भी क्रियाकलाप हैं, इस सारी गतिविधियों के संचालन की डोरी किसी अदृश्य शक्ति के हाथों में रहती है।
जैसे कि योगियों में भी जब वह समाधि लगाते हैं तो उनका मूल कारण यही होता है कि ,मूलाधार में सोई हुई कुंडलिनी, यह शक्ति ब्रह्मान्द्र मे जाकर के शिव से मिल जाए । तो उससे जीव को ब्रह्म का अनुभव और ज्ञान प्राप्त होता है।
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है ब्रह्म तब प्रकट हुआ जब देवताओं ने असुरों को हराया ।जब वह आसुरी प्रवृत्तियाँ हार जाएगी ,तब जाकर के ही उनके ऊपर विजय करने प्राप्त के बाद ही शिव स्वरूप दर्शन होंगे।
पहले देवी प्रवृत्तियाँ, आसुरी प्रवृत्तियों को हरायेगी , तब जाकर ब्रह्म ज्ञान और विचारों का साक्षात्कार होगा, कहने का आशय यह है ,कि सर्वप्रथम हमें अपने अंदर की जो आसुरी प्रवृतियां है, काम,क्रोध, माया, लोभ, मद ,इन सब पर विजय प्राप्त करनी होगी ।
और विजय प्राप्त करने के बाद चित्त को शांत करना पड़ेगा, चित्त को शांत करने के बाद हमे मन को ईश्वर मे लगाना पड़ेगा, तब जाकर के ज्ञान का प्रादुर्भाव, एवं सुख तथा मन की शांति का समावेश साथ होगा।
शिव के बिना शक्ति नहीं हो सकती, एवं बिना शक्ति के शिव नहीं है। अगर देखा जाए तो शिव और शक्ति में कोई अंतर नहीं है ।इसी प्रकार भगवान शिव और विष्णु में भी कोई अंतर नहीं है ।लेकिन जब उनकी मूर्तियों को देखते हैं ,तो शिवजी की बनावट अलग है ,विष्णु जी की बनावट अलग है, वेशभूषा भी अलग है ,तो हमें यह अलग दिखाई देते हैं ।
इसलिए हम उस तत्वों को समझ नहीं पाते हैं, लेकिन जैसे कि सारी नदियां जाकर की आखिर समुद्र में विलीन हो जाती है ।उसी प्रकार सभी विरोधाभास और जितनी भी उपाय हम लोग करते हैं सब उसी शिव में जाकर विलीन हो जाते है ,भगवान शिव हम सब पर कृपा करें
ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय हर
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