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Shiv pujaभगवान शिव की भागीरथ पर कृपा

भगवान शिव जी का भागीरथ द्वारा तपस्या करना 

अश्वमेध यज्ञ की स्थापना

महाराजा सागर के 60000 पुत्र थे ।वह सब के सब बहुत ही अभिमानी और दुष्ट थे। एक बार महाराज सागर ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अश्व (घोड़े) को छोड़ दिया और अपने पुत्रों को घोड़े के पीछे यज्ञ की सफलता के लिए लगा दिया।


जहां- जिस राज्य में घोडा जाता था, उस राज्य के लोग या तो युद्ध करते थे या तो आत्मसमर्पण कर लेते थे। राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को देख कर के देवताओं  ने सोचा कि यदि अश्वमेध यज्ञ पूरा हो गया तो उचित नहीं होगा, इसलिए घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम  में  में छिपा दिया।









कपिल मुनि अत्यंत तपस्या में थे। उन्हें इस कार्य का पता नहीं चला,इधर जब 60000 पुत्रों ने अश्व(घोड़े) को कहीं नहीं देखा, तो उन्होंने  ढूंढना शुरू  करना शुरू कर दिया।

वे खोजते- खोजते महर्षि कपिल के आश्रम  में पहुंचे, उन्होंने देखा कि उनका  अश्व बंधा हुआ है। तब उन्हें बड़ा क्रोध आया उनकी नजर कपिल मुनि पर पड़ी, उन्होंने सोचा कि हो ना हो इस दुष्ट ने हमारे अश्व को बांध रखा है।


उन्होंने  कपिल मुनि  को बुरा -भला  कहा और उनकी तपस्या में व्यवधान उत्पन्न कर  दिया, जिससे महर्षि  ने अपनी आंखें खोल दीं, अनायास बिना किसी कारण के तपस्या भंग करने पर उन्होंने कहा, तुम लोगों ने अकारण,आकार मेरी तपस्या को भंग कर  दिया।

इस पर वह सब कहते हैं कि हम आपको कैद में डाल देंगे, यह सुनकर कपिल मुनि का क्रोध प्रचंड हो गया, उन्होंने तुरंत अपने तपोबल से सागर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया

ब्रह्म जी की तपस्या :-






जब यह बात राजा सागर को ज्ञात गई, तो उन्हें बहुत दु:ख हुआ, (वह गंगा   जी को पृथ्वी पर लाने के लिए जिससे कि उनके पुत्रों का  उद्धार हो ), ब्रह्म जी की तपस्या के लिए चले गए।

उनकी तपस्या पूरी भी नहीं हुई, और उनका देहांत हो गया, उनके पुत्र भी गंगा जी को पृथ्वी पर लाने  के लिए तपस्या के लिए गए, उनकी तपस्या भी पूरी नहीं हुई, उनका भी बीच में उनके देहांत हो गया। 


तब राजा भागीरथ ने निश्चय किया कि मैं किसी भी तरह से तपस्या करके मां गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर ले कर आऊँगा ।अब मै यात्रा करता हूं, अब मैं तप करने जा रहा हूं।


यह निश्चय करके वह ब्रह्म जी की तपस्या के लिए चल दिए , और गोकर्ण तीर्थ में 1000 वर्ष तक कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया।

तब ब्रह्मा जी प्रसन्न  होकर  महात्मा भागीरथ के पास आए, और बोले वत्स मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूं, कृपया वर मांगिये ।

भागीरथ द्वारा ब्रह्मा जी से वर मांगना

भागीरथ जी बोले हे देव, मेरे पूर्वज इस समय न जाने किस स्थिति में होंगे, मैं चाहता हूं कि गंगा जी को आप पृथ्वी पर भेज दें, जिससे कि मेरे संकलन हो जाएं।


तब ब्रह्माजी बोले , भागीरथ मैं गंगा जी को भेज तो दूंगा, लेकिन उनके वेग को सहने की शक्ति किसी में नहीं है। उनके वेग को सहने की शक्ति केवल भगवान शिव में है। भगवान शिव से प्रार्थना करो, वह इस समस्या को हल कर सकते हैं। 


भगवान शिव जी का भागीरथ पर प्रसन्न होकर वरदान देना:-


ब्रह्मा जी की समझाने  के बाद भागीरथ जी भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गए। भागीरथ जी की कठोर तपस्या को देख कर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए
और कहा हे नर श्रेष्ठ, मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर   वरदान देने के लिए आया हूं, मैं गंगा देवी को अपनी जटाओं में धारण कर आपका प्रिय कार्य करूँगा । 

गंगा जी के अहंकार को नष्ट करना :-


देवी गंगा को अपने वेग पर बहुत अभिमान था उन्होंने सोचा कि मैं शिवजी को बहाते हुए पाताल में प्रवेश कर जाऊं, इसलिए वे बहुत विशाल रूप धारण कर के और तीव्र गति से भगवान शिव की मस्तक पर गिरी।



भगवान शिव को उनके अभिमान का पता चल गया। उन्होंने गंगा जी को अपनी जटाओं में बांध रखने का निश्चय कर लिया, गंगा जी पूरे वेग से शिव जी की जटाओं पर गिरी, और उसी में समा गई उन्होंने बहुत कोशिश की कि किसी प्रकार पृथ्वी पर जाएं, लेकिन शिवजी के जटा मंडल से निकल नहीं  पाई, वहीं कई सालों तक चक्कर लगा रही थी।


यह सब देख कर भागीरथ को बहुत दु:ख हुआ, वे भगवान शिव से प्रार्थना की हे प्रभु, इस तरह से आपकी जटा में देवी गंगा बंधी बनी रहेगी तो मेरे पूर्वजों  का उद्धार  कैसे होगा?

गंगा जी का पृथ्वी पर अवतरण:- 


भगवान शिवजी की जटा में बंधी हुई गंगा जी को अपने अभिमान का पता चला ,उनका अभिमान चूर- चूर हो गया था। तब जाकर भगवान शिव ने भागीरथ की प्रार्थना पर अपनी जटा में से थोड़ी सी जगह गंगा जी को जाने के लिए दी।

उसी रास्ते गंगा जी पृथ्वी पर आई इससे भागीरथ जी ने गंगा जी को बहुत-बहुत धन्यवाद  दिया, और भगवान शिव का उन्होंने बहुत-बहुत धन्यवाद दिया, साथ ही भगवान शिव के चरणों में नतमस्तक कर वह आगे -आगे बढ़े और पीछे' गंगा जी।


इस तरह से गंगा जी कई निर्जन प्रदेशों को सजीव करते हुए समग्रता से मार्ग के क्षेत्रों को संपूर्ण करते हुए आगे बढ़ती गयी।


गंगा की धरती पर आने से लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई, सभी लोग खुशियों से झूम गए।


और इस तरह से भागीरथ जी अपने पीछे -पीछे गंगाजी को लेकर कपिल मुनि के आश्रम में चले गए, वहां जाकर उन्होंने अपनी पूर्वजों की राख पर माता गंगा का प्रवेश करवाया ।

गंगा जी के स्पर्श से उनके पूर्वजों  का उद्धार  हो गया, और इसी तरह से भागीरथ जी की कठिन तपस्या के कारण भूलोक पर माता गंगा जी को आने का अवसर मिला।


और पृथ्वीवासियों को यह सबसे बड़ा वरदान मिला आज भी गंगा माता अपने स्वच्छ, और पवित्र जल से पापियों के पापों को धो रही है।

हर हर गंगे, हर हर गंगे, हर हर गंगे, हर हर गंगे, हर हर गंगे, हर हर गंगे, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय, हर हर महादेव, हर हर महादेव, हर हर महादेव।

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