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Shiv puja Devtaon ke dwara Bhagwan Maheshwar ki stuti

लिंग पुराण से यह प्रसंग लिया गया है ( वर्णित है ,कि) सत्न कुमार  बोले हे महा बुद्धिमान शैलाद जी भगवान शिव जी  का नाम  मनुष्यों के द्वारा बहुत से नामों में अनेक प्रकार से कहे गए शिव के रूपों एवं नामोको मैं उसी रूप में पुनः सुनना चाहता हूं ।

शैलाद जी  बोले हे मुनि मैं मनीषियों  के द्वारा शिव जी के  बहुत से नामों को जिसको कि अनेक प्रकार से कहा गया है,  क्योंकि आप अत्यंत जिज्ञासु है इसलिए मै भगवान शिव जी के नाम एवं  रूपों का वर्णन आपसे पुनः करूंगा ।

 हे मुनि, वेद रूपी समुद्र के अथाह सागर  में कुछ आचार्य तथा मुनीश्वर शिव  के क्षेत्र को प्रकृति व्यक्त तथा कलात्मक है ऐसा कहते  हैं।

कुछ विद्वानों  ने वेद स्वरूप तथा कुछ  विद्वानों ने परमेश्वर शिव को हिरण्यगर्भ पुरुष प्रधान तथागत रुप वाला ही कहा है। इस जगत का कारण हिरण्यगर्भ रहा है ,भोक्ता पुरुष विष्णु है ,और समस्त पर जीवों को अपने मे लय करने  वाला है।

और मुख्य कारण प्रधान है, उन्हीं  शिव का तथा बुद्ध चतुष्टया भगवान शिव का रूप चतुर्थी कहा जाता है शंकर से भिंन्न अन्य कोई भी वस्तु नहीं है ।

कुछ लोग ईश्वर  के रूप में शिव की चर्चा  करते हैं। चर्चा समस्त  शिव के  वक्तव्य के स्वरूप की  जाती है शब्द ब्रह्म  हैं।

सत्न कुमार बोलें हे देवताओं में श्रेष्ठ ,आपकी वचनामृत को   सुनते हुए मुझे  अत्यंत जिज्ञासा   हो रही है , कृपया बताएं कि शिव जी सभी देवताओं  के प्रमुख किस प्रकार से है?


 देवताओं ने शिव  जी  का स्तवन  कैसे किया ?अव्यक्त परमात्मा से संसार मंडल की स्थापना कैसे हुई?  

शैलाद जी बोले;


परम कारणों से उत्पन्न हुए सर्व व्यापक  भगवान शिव जी ने अपने मुख कमल से ब्रह्म  को उत्पन्न किया  और सृष्टि करने की आज्ञा से उनकी ओर दृष्टिपात किया।


 संपूर्ण  का सृजन किया तदोपरांत सृष्टि पालन की व्यवस्था स्थापित की ।उसके बाद विराट पुरुष  ने यज्ञ हेतु स्वयं की पुष्टि की ।

उससे यह अग्नि यज्ञ वज्रपाणि नारायण विष्णु मय हो गया वे समस्त देवगण विष्णु  भगवान की स्तुति करने लगे ।


तो महेश्वर  देवताओं को ज्ञान देकर कर स्वंय  इन के मध्य में स्थित हो गए। तत्पश्चात देवताओं ने भगवान शंकर से पूछा कि आप कौन हैं ?तब भगवान ने कहा ही श्रेष्ठ देवो मैं विराट परम पुरुष हूं सृष्टि के पहले भी मैं  था ,अब भी हूं ,और भविष्य में भी रहूंगा ,इस लोक में मुझसे बढ़कर अन्य कोई नहीं है ।



हे श्रेष्ठ देवताओं अन्य कुछ भी मुझसे भिन्न  नहीं है,  मैं सर्वत्र  हूं और मैं  ब्रह्मा,बृहस्पति,एवं वेदों का पालक हूं ,

मैं   विश्व  स्वरूप, सत्यम,सर्वदा शांत और अप्रत्यक्ष भगवद स्वरूप  हूं ।


भगवान् शिव कहते हैं कि मैं जल हूं, मैं तेज हूं, और मैं परिष्कृत यज्ञ भूमि  हूं ।मैं ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद, हूं मैं आकाश रूप हूं, मैं अंगिरा,  और श्रेष्ठ चतुर्वेद हूं ।

मैं महाभारत आदि इतिहास  में,  मैं सभी वेदों  का संरक्षक हूं,मैं सबसे श्रेष्ठ हूं , मैं पवित्र हृदय कमल रूप हूं, मैं उसका मध्य भाग हूं ।


परम ज्योति  भी मै हूं , मैं ब्रह्मा, विष्णु ,महेश्वर ही हूं। बुद्धि, अहंकार, सत्य  भी मैं ही हूं ।


हे श्रेष्ठ देवगण इस प्रकार जो मुझे विश्वव्यापी जानता है वही सर्वज्ञ है।  वह मोक्ष का अधिकारी हो जाता है ।

वेदों से सभी ब्राह्मणों से  को सत्य श्री धर्म को धर्म से अन्य सभी  को  तृप्त करता हूं ऐसा कह कर भगवान शिव अंतर्धान हो गए ।

तदनंतर जब उन देवताओं ने भगवान शिव जी  को नहीं देखा तो सभी परमात्मा का ध्यान करने लगे ।नारायण विष्णु एवं  सभी देवता आकाश   की ओर हाथ उठाकर कल्याणकारी रूद्र की स्थिति महाकाल  जो भगवान ब्रह्मा है,  विष्णु हैं, महेश्वर हैं, कार्तिकेय हैं, इंद्र है ।

 सभी ग्रह, तारा ,नक्षत्र ,आकाश सभी दिशा हैं , समस्त प्राणी सूर्य चंद्रमा को ग्रहण कार्य मृत्यु और मोक्ष प्रदान करने वाले  यही परमेश्वर है ।पूर्वकालिक विश्व संपूर्ण संसार  मे आगे होने वाली जगह का वर्तमान काल के सभी पदार्थों में महेश्वर ही हैं।उन उमापति शिवजी को हम देवगण  बार-बार नमस्कार करते हैं ।


देवता बोले शिव जी  ही ब्रह्मा ,विष्णु, महेश्वर ,कार्तिकेय, इंद्र, दोनों अश्विनी कुमार ,सभी ग्रह ,तारा, नक्षत्र ,आकाश तथा दिशाएं हैं।


 समस्त प्राणी सूर्य ,चंद्रमा,  ग्रहण काल एवं मृत्यु प्रमुख रूप से परमेश्वर ही हैं ।पूर्वकालिक विश्व , संपूर्ण संसार मे आगे होने वाली जगह ,और वर्तमान कालीन सभी पदार्थ  वास्तव में महेश्वर ही हैं उन्हें बार-बार नमस्कार है ।


आदि तथा अंत में आप ही प्राप्त हुए और आप ही  ज्योति   स्वरूप हैं ,आप विश्वरूप हैं ,तथा जगत के शीर्ष हैं,  जाती हैं आप प्रकृति, पुरुष  रूप हैं।


 आप ब्रह्मा, विष्णु, महेश,  पूर्ण  ब्रह्म है। आप सब के आधार और देवताओं के भी  ईश्वर हैं ।शांति, पुष्टि, तथा सृष्टि आप ही हैं।


  आप ही शिव,  रूद्र,  शंकर  तथा आश्रयो के आश्रय रूप ब्रह्म है। हम उमा सहित सदाशिव के सौंदर्य  , अर्धनारीश्वर भगवान शिव के दर्शन से मुक्त हो जाएं ,शिव ज्योति को प्राप्त करने पर  काम ,क्रोध ,आदि शक्ति हमारा  क्या बिगाड़ पायेंगी ।


 आप समस्त सारस्वत है ,आप सर्वजन के पालनहार  पावन,  शांत,  अविनाशी है। आप अपनी चंद्र से भक्तों की अंतः करण को लीला पूर्वक अपने मे  लय  कर लेते हैं ।



यह जगत शिव  स्वरूप है। आप ही उमा सहित शुक्र तथा शाश्वत है ।यह जो ओम है वही  सर्वव्यापी है ।


जो सब को व्याप्त करके रहता है ।अनंत कारक शुभ्र  ज्योति परब्रह्म,  ईशान भगवान महेश्वर साक्षात् महादेव है इसमें संशय नहीं है ।

 ऊँ का उच्चारण करते ही यह सारे शरीर को ऊपर की ओर खींचता है अतः इसे ओमकार कहा ऐ देखते हैं  और हम लोग को भक्ति की  प्राप्ति कराते हैं इसलिए भगवान कहे जाते हैं 


 यह महेश्वर अपनी लीला से ही कर्म से सभी लोगों को अपने अधीन करते हैं ,उनकी सृष्टि करते हैं, तथा उनका पालन भी करते हैं ।

यही शिव विश्वरूप होकर चलायमान  रहते  हुए सभी दिशाओं के रूप में स्थित होते हैं। यह शिव ही ब्रह्मा में प्रविष्ट होकर  उत्पन्न होते हैं ।


और आगे भी उत्पन्न होंगे, वह सभी कालों को व्याप्त करके स्थित रहते हैं एवं सज्जनों को इन अविनाशी प्रभु की उपासना करनी चाहिए, इनका वर्णन करने में असमर्थ होने के कारण सरस्वती भी लौट आती है।  


महादेव   जो महान से भी महान हैं,  सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है तथा यह महेश्वर प्राणियों के ह्रदय   की गुफा में बाल के अग्र नोक के बराबर सूक्ष्म  रूप से स्थित है। योगियों के  भीतर और बाहर अग्निशिखा की भांति विराजमान हैं ।



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Shiv katha
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