"लिंग पुराण से भगवान शिव की महिमा | शिव ही सृष्टि के परम कारण"


लिंग पुराण से भगवान शिव की महिमा

भूमिका
लिंग पुराण में भगवान शिव के अनंत रूपों और उनकी सर्वोच्च सत्ता का अद्भुत वर्णन मिलता है। सतनकुमार मुनि और शैलाद जी के संवाद में यह स्पष्ट होता है कि शिव ही समस्त सृष्टि के आदि, मध्य और अंत हैं। वे ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर रूप में कार्य करते हैं और समस्त जगत शिवस्वरूप है।

शैलाद जी का वर्णन

सतनकुमार मुनि ने शैलाद जी से भगवान शिव के नामों और स्वरूपों का पुनः वर्णन करने का आग्रह किया। शैलाद जी ने कहा—

  • कुछ आचार्य और मुनि शिव को वेद स्वरूप कहते हैं।
  • कुछ ने उन्हें हिरण्यगर्भ पुरुष प्रधान रूप में वर्णित किया है।
  • कुछ विद्वानों ने शिव को ईश्वर स्वरूप, शब्द ब्रह्म, और सृष्टि का परम कारण माना है।

वास्तव में, शंकर से भिन्न अन्य कोई भी वस्तु नहीं है।

शिव का सृष्टि विधान

शैलाद जी बताते हैं—

  • परम कारण से उत्पन्न होकर भगवान शिव ने अपने मुख से ब्रह्मा को उत्पन्न किया और सृष्टि रचना का आदेश दिया।
  • ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया और पालन की व्यवस्था विष्णु को दी।
  • महेश्वर स्वयं देवताओं के बीच स्थित होकर ज्ञान प्रदान करने लगे।

तब देवताओं ने भगवान से पूछा— "आप कौन हैं?"

भगवान शिव का उपदेश

भगवान शिव ने कहा—

  • "मैं विराट परम पुरुष हूँ। सृष्टि के पहले भी मैं था, अब भी हूँ और भविष्य में भी रहूँगा।"
  • "मैं ही ब्रह्मा हूँ, मैं ही विष्णु हूँ और मैं ही महेश्वर हूँ।"
  • "मैं ही वेद हूँ, मैं ही ज्योति हूँ, मैं ही विश्व का आधार हूँ।"
  • "मैं जल हूँ, मैं अग्नि हूँ, मैं आकाश हूँ, मैं बुद्धि, अहंकार और सत्य भी हूँ।"

👉 जो साधक शिव को विश्वव्यापी परम कारण जान लेता है, वही मोक्ष का अधिकारी बनता है।

देवताओं की स्तुति

जब भगवान अंतर्धान हो गए, तो देवताओं ने उनकी स्तुति करते हुए कहा—

  • "आप ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र, कार्तिकेय और सभी देवता हैं।"
  • "आप ही सूर्य, चंद्रमा, ग्रह-नक्षत्र, दिशा और काल हैं।"
  • "आप ही सृष्टि के आदि और अंत हैं। आप ही परम ज्योति और विश्वरूप हैं।"
  • "आप प्रकृति और पुरुष दोनों स्वरूपों में स्थित हैं।"
  • "आप ही शिव, रुद्र, शंकर, अर्धनारीश्वर और सदाशिव हैं।"

आध्यात्मिक संदेश

यह प्रसंग हमें सिखाता है कि —

  • शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि समस्त अस्तित्व का आधार हैं।
  • समस्त जगत शिवस्वरूप है।
  • "ॐ" का उच्चारण शरीर और आत्मा को ऊपर की ओर खींचता है और साधक को परमात्मा से जोड़ देता है।
  • शिव हृदय की सूक्ष्मतम गुफा में स्थित होकर योगियों के भीतर अग्निशिखा के समान प्रकट होते हैं।

निष्कर्ष

लिंग पुराण में वर्णित यह प्रसंग हमें स्मरण कराता है कि भगवान शिव ही सृष्टि के मूल, पालनकर्ता और संहारक हैं। वे ही वेद, ब्रह्म, ज्योति और परम कारण हैं। जो साधक शिव को विश्वव्यापी परब्रह्म रूप में जान लेता है, वही सच्चे अर्थों में मुक्ति का अधिकारी बनता है।

📌 डिस्क्लेमर

यह लेख लिंग पुराण में वर्णित प्रसंग पर आधारित है। इसमें प्रस्तुत विचार, कथाएँ और वर्णन पूरी तरह से शास्त्रीय एवं पौराणिक ग्रंथों से लिए गए हैं। इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारी प्रदान करना है। इसे किसी प्रकार की व्यक्तिगत मान्यता, विवाद या तर्क-वितर्क का आधार न बनाया जाए। < < <

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