शिव पुराण से यह प्रसंग लिया गया है।
श्री सत्नकुमार जी ने पूछा महा ज्ञानी सूत जी आप संपूर्ण सिद्धांत के बारे में जानते हैं ।
तथा साधु पुरुष किस प्रकार से अपनी मानसिक परेशानी को दूर करते हैं? इस घोर कलिकाल में जीव आसुरी स्वभाव के हो गए हैं, उस जीव समुदाय को शुद्ध देवी संपत्ति युक्त बनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है?
आप इस समय मुझे ऐसा कोई सा साधन बताएं, जो कल्याणकारी वस्तुओं में भी सबसे उत्कृष्ट एवं परम मंगलकारी हो, तथा पवित्र करने वाला हो,
वे पवित्र करने वाले उपायों में भी जो श्रेष्ठ प्रकार का हो । वह तंत्र ऐसा हो जिसका अनुष्ठान से शीघ्र ही अंतःकरण की विशेष शुद्धि हो जाए और उससे निर्मल चित्त वाले पुरुष को
सदा के लिए शिव की प्राप्ति हो जाएं।
तो सूत जी ने कहा की मुनि श्रेष्ठ तुम धन्य हो, क्योंकि तुम्हारे हृदय में पुराण कथा सुनने की विशेष प्रेम एवं लालसा है।
इसलिए मैं शुद्ध बुद्धि से विचार कर सबसे परम श्रेष्ठ शास्त्र का पाठन करता हूं, यह पुराण संपूर्ण शास्त्रों के सिद्धांत से प्राप्त भक्ति आदि को बढ़ाने वाला है, तथा भगवान शिव को मानने वाला है। भक्तों के लिए यह अमृत भी है।
पूर्व काल में भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कहा था कि यह पुराण काल रूपी सर्प से प्राप्त होने वाले महान क्लेश का विनाश करने वाला उत्तम साधन है।
उनके बाद उन्होंने कुमार मुनि का उपदेश पाकर संक्षेप में यह संकेत दिया है कि यह पुराण कलयुग में होने वाले पाप को क्षय करने का अंतिम हित का साधन है।
इस पुराण को भगवान शिव का स्वरूप खोजा जाना चाहिए और सभी प्रकार से इसका सेवन करना चाहिए। शिव भक्ति पाकर मनुष्य शिव को प्राप्त करते हैं ।
मनुष्य ने इस पुराण को पढ़ने की इच्छा की है। इसके अध्ययन को बेशक उत्कृष्ट माना जाता है। इसका पाठ मनुष्य को संपूर्ण पाप से मुक्ति दिलानेवाला है।
भगवान शिव के इस पुराण को पढ़कर मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है।इस जीवन में उत्कृष्ट उपभोग करने के अंत में शिवलोक जाता है।
शिव पुराण 24000 श्लोकों से युक्त है, लोगों को चाहिए कि वह भक्ति ज्ञान और वैराग्य से समृद्ध हो बड़े आदर से इसका सेवन करें,
इसकी संहिताओं मे परब्रह्म परमात्मा विराजमान है, और यह सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करने वाला है ।जो निरंतर शोधपूर्वक शिव पुराण का पाठ करता है ,वह पुण्यात्मा है ,इसमें कोई संदेह नहीं है ।
हैं जो प्रतिदिन आदरपूर्वक शिव पुराण का पाठ करता है वही संसार में संपूर्ण लोकों का भोग भोगकर अंत में भगवान शिव के पद को प्राप्त करता है।
जो प्रतिदिन रेशमी वस्त्रों से इस पुराण का सत्कार करता है और सदा सुखी होता है ।
इसलिए सदा प्रेमपूर्वक से इस उत्तम शिव पुराण का पाठ करना चाहिए ।
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