माता आदि शक्ति के द्वारा देवताओं को सांत्वना देना
ब्रह्मा उवाच :-
ब्रह्मा जी बोले हे नारद, जब देवताओं को माता आदि शक्ति ने सांत्वना दी, तो सारे देवता प्रसन्न मन से अपने-अपने लोक को चले गए।हिमालय एवं मैंना भी आकर दिन रात शिवा का ध्यान करने लगे ,वह हमेशा आदिशक्ति का ध्यान करती रहती ,कभी वह व्रत रहती ,कभी वह मिष्ठान पर रहती है, कभी वह निराहार रहती हैं, इस तरह व्रत, उपवास, कीर्तन ,मनन, चिंतन, सब तरह से चौबीस दिन लगातार महान शक्ति की ध्यान में लीन रही।आदिशक्ति का प्रादुर्भाव:-
एक दिन की बात है, माता आदिशक्ति उनके समक्ष प्रकट हो गई,उन्होंने कहा कि देवी, वर मांगो जो- जो, आपकी अभिलाषा हैं।
इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है ,जो कि मैं आपको दे ना सकूं, माता के वचन सुनकर कर मैंना बोली- हे मां आदिशक्ति ,आपका दर्शन हो गया, यही मेरे लिए सबसे बड़े सौभाग्य की बात है।
यह सुनकर माता आदि शक्ति बड़ी खुश हुई और उन्होंने मैंना को खींचकर अपने अंक में भर लिया।
मैंना को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति:-
माता आदि शक्ति के स्पर्श होते ही मैंना को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो गई ,उनका सारा तपस्या जनित क्लेश मिट गया, उनके अंदर एक अभूतपूर्व ज्योति समा गई, मैंना बहुत ही गदगद भाव से बोली।
हे देवी, यदि आप मुझे देना ही चाहती है, तो मेरे सौ बलवान पुत्र हो, आप साक्षात मेरे घर, मेरी पुत्री के रूप में अवतार लेकर मेरी अभिलाषा पूर्ण कीजिए।
मैंना के वचन सुनकर माता आदि शक्ति बड़ी प्रसन्न हुई ,वह बोली बिल्कुल आपके सौ पुत्र होंगे और उसमें भी जो पहला पुत्र होगा, वह उन सभी में सबसे अधिक शक्तिशाली, सबसे बलवान, और सबसे अधिक मेधावी होगा ।
तथा मै आपके घर आपकी पुत्री के रूप में अवतार लूंगी, और भगवान शिव का वरण करूंगी।
देवी के वचनों को सुनकर हिमालय और मैंना बहुत प्रसन्न हुए ।
हिमालय के शरीर में अनोखी ज्योति का प्रवेश:-
दिन बीतते गए एकाएक एक दिन हिमालय का शरीर एक अभूतपूर्व आभा से चमक उठा उनके अंदर एक अद्भभुत स्फूर्ति समा गई।
उनके शरीर से एक अनोखी आभा टपकने लगी देवी आदिशक्ति साक्षात अपने संपूर्ण अंश से हिमालय के शरीर में प्रविष्ट हो चुकी थी।
देवताओं द्वारा माता आदि शक्ति का दर्शन:-
दस दिवस के बाद मैना को गर्भ रह गया जिससे कि मैंना का शरीर आलोकित हो गया, जब देवताओं को मालूम पड़ा कि आदिशक्ति मैना के गर्भ में आ चुकी हैं तो समस्त देवता हिमालय के घर पहुंच गए, एवं गर्भ में माता आदिशक्ति का दर्शन करके उनका स्तवन करने लगे ।
धीरे-धीरे समय बीतता चला गया मैंना
के गर्भ के नौ महीने हो चुके थे। दसवां महीना भी बीत गया था, तभी एक आलोकिक प्रकाश मैंना के समक्ष प्रकट हुआ,
जिसमें माता आदिशक्ति थीं, यह देख मैंना हाथ जोड़कर बैठ गई ,मैंना बोली हे माता, आपका फिर से दर्शन हुआ मेरे भाग्य पूर्ण जग गए।
माता आदिशक्ति बोली हे देवी, मैंने आपकी पुत्री के रूप में अवतार लिया है, क्योंकि मैं मनुष्य के रूप में रहूंगी इसलिए आप मुझे पहचान नहीं पाएंगी ,यह याद दिलाने के लिए मैं उपस्थित हुई हूं।
इस पर मैंना बोली हे देवी माता ,अब आप शिशु का रुप धारण कर लीजिए जिससे हम दिव्य भाव से आपकी पूजा अर्चना कर सके।
तब आदि शक्ति बोली हे देवी मैं अब शिशु का रूप धारण करने जा रही हूं ,इसलिए चाहे पुत्री केरूप में या जैसे भी आपको अच्छा लगे वैसा आप भाव समझिएगा, और यह कहकर माता आदिशक्ति मैंना के सामने शिशु रूप में प्रकट हो गई ।
उस समय चारों ओर से अनुकूल हवाएं चलने लगी, वह बसंत ऋतु का चैत मास था, नवमी तिथि,( मृगशिरा नक्षत्र) बहुत ही शुभ मुहूर्त था। आधी रात्रि को माता आदिशक्ति का प्रादुर्भाव हुआ।
माता का शिशु रूप में प्रकट होना:-
माता का सुंदर रूप नीलकमल के समान खिला हुआ था। करोड़ो चन्द्र माता के रूप के समक्ष कुछ भी नहीं थे, ऐसा आलौकिक और दिव्य रूप माता का कि लोग देखते ही अपनी सुध- बुध खो देते थे ।
इस प्रकार का रूप माता आदिशक्ति ने शिशु रूप में धारण कर रखा था। इसके पश्चात माता के रूदन की आवाज को सुनकर महल की सभी दासिया महल में दौड़ती हुई आई ,हिमालय और मैंना ने बाल शिशु स्वरूप माता आदिशक्ति का अत्यंत भक्ति भाव से स्तवन किया ।
नामकरण संस्कार:-
बालिका के नामकरण संस्कार में बालिका के श्याम वर्ण को देखकर के बालिका का नाम कालिका रखा गया, धीरे-धीरे बालिका बड़ी होती गई ,बालिका का एक नाम उमा रखा गया उमा का मतलब होता है अरी तपस्या मत कर,।
माता पार्वती की शिक्षा दीक्षा :-
बालिका के नामकरण संस्कार में उनका सबसे प्रिय नाम पार्वती रखा गया ।धीरे-धीरे पार्वती बड़ी होती चली गई,उनकी शिक्षा की व्यवस्था अत्यंत श्रेष्ठ गुरुओं के द्वारा हुई।
बहुत ही अल्प समय में माता पार्वती ने संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया । एवं इस तरह अपनी मनोहर लीला के द्वारा माता-पिता को सुख देने लगी।
ब्रह्म उवाच:-
ब्रह्मा जी बोले हे नारद तुम वार्ता करने में बड़े कुशल हो, एक दिन तुम अनायास पर्वत राज हिमालयके घर पहुंचे ।
वहां पर तुम्हें देख पर्वतराज हिमालय और मैंना अत्यंत खुश हुए, देवर्षि नारद ब्रह्म के मानस पुत्र आज हमारे दरवाजे पर पधारे हैं।
देवर्षि उन्होंने आपके चरणों को धोया ऊंचे स्थान पर सुंदर आसन दिया । तथा। साथ में पार्वती को बुलाकर कहा देवर्षि इस कन्या भाग्य देखिए और बताइए कि इसका भाग्य कैसा है?
नारद जी के द्वारा पार्वती जी का हाथ देखना:-
नारदजी ने बालिका के संपूर्ण शरीर पर दृष्टि डाली और पर्वत राज हिमालय से बोले हे पर्वत श्रेष्ठ आपकी बालिका सभी गुणों से संपन्न है ।
तो पर्वत राज बोले कि देवर्षि देखिए ,इसका विवाह कैसे होगा ? नारदजी , बालिका का हाथ देख करके बोलें कि हे पर्वतराज, आपकी बालिका सर्वगुण संपन्न है।
पार्वती जी के वर का चित्रण:-
परंतु एक विचित्र बात यह है कि आपकी बालिका के हाथ में जो विवाह की रेखा है, वह बड़ी अद्भुत है। वह यह बताती है कि बालिका का विवाह एक नंग-धड़ंग विचित्र वेशभूषा वाले व्यक्ति से होगा ।
जिनके पूरे शरीर में भस्म होगी, गले में सांपों की माला ,हाथों में रुद्राक्ष की माला होगी ,माथे पर चंद्र होगा, सर पर गंगा होगी, जिनके माता-पिता का कोई भी ज्ञान नहीं होगा, ऐसी विचित्र वेशभूषा वाले व्यक्ति से इस कन्या का विवाह होगा।
पर्वत राज हिमालय और मैंना की चिंता:-
नारद जी के द्वारा हिमालय के सन्ताप को दूर करना :-
नारद जी ने कहा ब्रह्म जी ने जैसा लिखा है वैसे ही सारे गुण भगवान शिव के अंदर मिलते हैं और भगवान शिव के अंदर अमंगल भी मंगल हो जाते हैं।
क्योंकि वही पार ब्रह्म परमेश्वर है ,अनादि और अनंत है, और ईश्वरों के भी ईश्वर है । इसलिए बिना संकोच के पार्वती जी का विवाह भगवान शिव के साथ करवा दो।
तब हिमालय ने कहा मैंने किन्नरो के मुंह से सुना है कि सती के आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव ने प्रतिज्ञा की थी, कि सती के अलावा मैं किसी और से कभी विवाह नहीं करूंगा।
नारद जी के द्वारा माता पार्वती के पूर्व जन्म का वर्णन करना:-
उस पर नारद जी महाराज बोले, हे पर्वत राज आप किसी भी प्रकार के संशय में न पड़े, यह आपकी पुत्री पूर्व जन्म में सती के रूप में थी । सती का एवं भगवान शिव का जन्म जन्मांतरों का साथ है। यह तो लीला करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होते है।
आपकी पुत्री पार्वती भगवान शिव का आधा अंग है, और आगे यही अर्धनारीश्वर केरूप में पृथ्वी पर पूजे जाएंगे।
देवर्षि की बात सुनकर पर्वतराज हिमालय और मैंना अत्यंत खुश हुए, उन्होंने देवर्षि का अपूर्व स्वागत किया, इसके पश्चात देवर्षि ने हिमालय और मैंना को आशीर्वाद दिया ,और अपने लोक में लौट आए।
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