Shiv Katha माता पार्वती के रूप में आदि शक्ति का जन्म लेना
माता आदि शक्ति के द्वारा देवताओं को सांत्वना देना
ब्रह्मा उवाच: ब्रह्मा जी बोले— हे नारद, जब देवताओं ने शिव के विवाह की भविष्यवाणी सुनी और सती के आत्मदाह की पीड़ा का स्मरण किया, तब वे बहुत ही विचलित हो गए। उस समय माता आदि शक्ति ने स्वयं प्रकट होकर सभी देवताओं को सांत्वना दी और कहा, “हे देवगण! चिंता मत करो। समय आने पर सब कुछ मंगल होगा।” यह सुनकर समस्त देवता प्रसन्न हुए और अपने-अपने लोकों को लौट गए।
उधर हिमालय और मैना भी तपस्विनी पुत्री शिवा की सेवा में लग गए। वह पुत्री शिवा — जो स्वयं आदिशक्ति थीं — दिन-रात महान व्रत, उपवास, जप, ध्यान, कीर्तन और चिन्तन में लीन रहती थीं। चौबीस दिन तक उन्होंने निराहार रहकर केवल शिव के ध्यान में स्वयं को समर्पित कर दिया।
आदिशक्ति का प्राकट्य
एक दिन अचानक माता आदि शक्ति स्वयं हिमालय और मैना के समक्ष प्रकट हो गईं। उनके तेज से सारा पर्वत आलोकित हो गया। देवी ने स्नेहपूर्वक कहा, “हे देवी! वर मांगो — जो भी तुम्हारी अभिलाषा हो।”
यह सुनकर मैंना अत्यंत भाव-विभोर हो गईं। उन्होंने कहा, “हे आदिशक्ति! आपका साक्षात दर्शन ही मेरे लिए सबसे बड़ा वरदान है। इसके अतिरिक्त मुझे और कुछ नहीं चाहिए।” देवी इस उत्तर से प्रसन्न हुईं और उन्होंने मैना को अपने अंक में भर लिया।
मैंना को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति
जैसे ही देवी का स्पर्श मैना को मिला, उनके भीतर ब्रह्म ज्ञान का अद्भुत आलोक प्रस्फुटित हो गया। समस्त तप और क्लेश क्षीण हो गए, और वह दिव्यता से ओतप्रोत हो गईं। फिर अत्यंत भावुक होकर बोलीं — “हे जगतजननी! यदि आप देना ही चाहती हैं तो मुझे सौ बलवान पुत्र दें और स्वयं मेरी पुत्री के रूप में अवतरित होकर मेरी अभिलाषा पूर्ण करें।”
देवी ने मुस्कराकर कहा, “ऐसा ही होगा। तुम्हारे सौ पुत्र होंगे, और उनमें जो पहला पुत्र होगा, वह सर्वाधिक बलशाली और मेधावी होगा। मैं स्वयं तुम्हारे घर पुत्री रूप में जन्म लूँगी और शिव को वरण करूंगी।”
हिमालय के शरीर में देवी का प्रवेश
दिन बीते और एक दिन हिमालय के शरीर में एक दिव्य प्रकाश प्रवेश कर गया। वह तेज इतना अद्भुत था कि उनका समस्त शरीर ज्योति से नहाने लगा। दरअसल, यह स्वयं आदिशक्ति थीं, जिन्होंने संपूर्ण रूप से हिमालय के शरीर में प्रवेश किया था।
देवताओं का स्वागत और गर्भस्थ आदिशक्ति के दर्शन
दस दिन पश्चात मैना को गर्भधारण हुआ। जैसे ही देवताओं को यह शुभ समाचार मिला, वे दौड़े-दौड़े हिमालय पहुँचे। वहाँ गर्भस्थ आदिशक्ति के दर्शन कर उन्होंने स्तुति की।
आवतरण का समय
जब नौवां और फिर दसवां महीना भी बीत गया, तो चैत मास की नवमी, मृगशिरा नक्षत्र की आधी रात में एक दिव्य ज्योति मैना के समक्ष प्रकट हुई। यह स्वयं माता आदिशक्ति थीं। उन्होंने मैना से कहा — “अब मैं शिशु रूप में अवतरित हो रही हूं। किंतु मनुष्य रूप में रहने के कारण तुम मुझे पहचान नहीं पाओगी, इसलिए यह स्मरण कराने आई हूं।”
मैना ने कहा, “हे देवी! कृपया शिशु रूप में अवतरित हों ताकि हम सेवा कर सकें।” यह सुनकर माता एक दिव्य बालिका के रूप में प्रकट हो गईं। वायुमंडल में वसंत बहने लगा।
माता का शिशु रूप
बालिका का स्वरूप नीलकमल के समान था। करोड़ों चंद्रमा उनके सौंदर्य के सामने फीके थे। उनके रुदन की मधुर ध्वनि सुनकर महल की दासियाँ दौड़ीं और हिमालय व मैना ने दिव्य भाव से स्तुति की।
नामकरण संस्कार
श्याम वर्ण देखकर उनका नाम 'कालिका' रखा गया। जब मैना ने उन्हें तप में लीन देखा तो कहा “उ मा!” — “अरी मां, तप मत कर”, इसी से उनका दूसरा नाम 'उमा' पड़ा।
सबसे प्रिय नाम रखा गया — पार्वती, पर्वतराज की पुत्री होने के कारण।
माता पार्वती की शिक्षा
श्रेष्ठ आचार्यों द्वारा वेद, शास्त्र, आयुर्वेद, नीति, संगीत आदि की शिक्षा प्राप्त की। शीघ्र ही वे सर्वगुणसंपन्न हो गईं।
नारद जी का आगमन
नारद जी हिमालय के घर पधारे। स्वागत हुआ, उन्हें उच्च आसन दिया गया। पार्वती को बुलाया गया और हिमालय ने नारद से कहा — “कन्या का भाग्य देखें।”
पार्वती के वर का भविष्यफल
नारद जी बोले — “यह कन्या अत्यंत दिव्य है, परंतु विवाह एक ऐसे योगी से होगा जो भस्म लिप्त होंगे, नागों की माला, गंगा-जटा, चंद्र मस्तक, और माता-पिता विहीन होंगे।”
पर्वतराज की चिंता
हिमालय और मैना चिंतित हुए। “क्या कोई उपाय नहीं जिससे विवाह सुंदर राजकुमार से हो?”
नारद जी का समाधान
“हे पर्वतराज! वे कोई और नहीं स्वयं भगवान शिव हैं। उनके जैसा कोई नहीं। यह कन्या भी पूर्व जन्म की सती हैं। यही आगे अर्धनारीश्वर रूप में पूजी जाएंगी।”
देवर्षि की विदाई
हिमालय ने आभार प्रकट किया, नारद जी ने आशीर्वाद दिया और अपने लोक लौट गए।
डिस्क्लेमर:
इस लेख में दी गई जानकारी /सामग्री/गणना की प्रमाणिकता की स्वतंत्र पुष्टि नहीं है। यह सामग्री विभिन्न धर्मग्रंथों, कथाओं, प्रवचनों, ज्योतिषीय ग्रंथों और पौराणिक शास्त्रों से प्रेरित है। हमारा उद्देश्य मात्र आध्यात्मिक शिक्षा और सांस्कृतिक चेतना का प्रसार है। पाठक अपने विवेक से इसका उपयोग करें।
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