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Shiv Katha

हिमालय का वचन भंग 

भगवान शिव जी ने ,हिमालय राज से जब देवी पार्वती जी का हाथ मांगा ,तो हिमालय राज  क्रोध से आगबबूला हो उठें।

हिमालय राज बोले हे नट , यह हम मानते हैं कि आपकी कला से हम अभिभूत हो गए । और आपको हमने वचन दे दिया ,कि आप हमसे कुछ भी मांग लिजिए, परन्तु ये कैसा दु:साहस कि आप मेरी पुत्री पार्वती को मांग बैठे।


नट की बात सुनकर देवी मेनका का भी क्रोध आसमान चढ़ गया। वह क्रोध में तमतमाते हुए बोली हे शैलराज ,इस नट को अभी बाहर निकलवा दिजिए।

हिमालय राज का असफल प्रयास :-


देवी मेनका की बात को सुनकर हिमालय राज ने अपने सिपाहियों का आदेश दिया, कि इस नट को  पकड़कर सभा से बाहर कर दिया जाए।

परंतु जैसे ही सिपाही वहां पहुंचे, एक अद्भुत तेज देखकर के  वे डर गए ,पकड़ना तो दूर उस अद्भुत तेज के समक्ष कोई खड़ा भी नहीं हो पाया।
उस अद्भुत तेज  को हिमालय राज ने भी  देखा,

त्रिमूर्ति का दर्शन :-

वहां  पर भगवान विष्णु ने साक्षात् दर्शन दिए, जिसकी हिमालय राज रोज पूजा करते थे, वही विराजमान है। 

और नहीं तो जो, जो, पुष्प पूजा में चढ़ाये थे, वह पुष्प भी विराजमान है।यह देखकर हिमालय राज अत्यंत आश्चर्य में पड़ गये।

हिमालयराज बहुत चकित हुए उन्होंने देखा कि भगवान विष्णु माता लक्ष्मी सहित पीताम्बर धारण कर मुस्कुरा रहे हैं। 

इसके  पश्चात हिमालय राज ने लाल वर्ण के  चतुर्मुखी ब्रह्मा जी को हाथों में वेद धारण किये हुए देखा।


शिव लीला के दर्शन :-


भगवान शिव जी की लीला भी बहुत अद्भुत एवं अद्वितीय होती है। हिमालय राज  भगवानशिव की लीला को देखकर मोहित पर मोहित हुए जा रहे थे ।


तभी उन्होंने देखा स्वयं देवराज इंद्र सभा सहित विराजमान है ।

देवी पार्वती को शिव का दर्शन:-

यह सब देवी पार्वती जी ने भी देखा। देवी पार्वती जी ने अपने हृदय में साक्षात भगवान शिव को देखा। भगवान शिव  बोले हे देवी,  

 कोई वर मागो तब पार्वती जी बोली हे प्रभु आप मुझे पति रूप में मिल जाए यही मेरी मनोकामना  है। तो भगवान शिव बोले तथास्तु और अंतर्ध्यान हो गए ।

हिमालय राज मोक्ष की ओर अग्रसर:-

इधर हिमालय राज ने फिर देखा देवराज इन्द्र की जगह भगवान शिव, देवी पार्वती के साथ बैठे हुए हैं एक हाथ में डमरु, एक हाथ में त्रिशूल , गले में सांपों की माला है। और वह मंद मंद मुस्कुरा  रहे हैं।


 यह सब दृश्य एक-एक देख करके, हिमालयराज भक्ति में डूब गए वह परमानंद को प्राप्त हो गये।

 हिमालयराज को भक्ति में डूबा हुआ देखकर भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए। 

भगवान शिव का अंतर्ध्यान होना:-


भगवान शिव के अंतर्ध्यान होते ही, हिमालय राज को समझ में आ गया ,कि यह  नट और कोई नहीं भगवान शिव ही हैं।

स्वयं देवाधिदेव महादेव उनके द्वारा पर आए थे।


भगवान शिव जी की माया से मोहित हो हिमालय राज भगवान शिव को पहचान नहीं पाये थे परन्तु भगवान शिव की लीला को देखकर उनका हृदय भगवान शिव जी के चरणों में लगा गया । बुद्धि निर्मल हो गई ,और इस तरह से वे मोक्ष की अधिकारी बन गए।

डिस्क्लेमर:-

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