Shiv Katha "हिमालय का वचन भंग: जब भगवान शिव स्वयं नट रूप में प्रकट हुए"
🔱 हिमालय का वचन भंग 🔱
भगवान शिव जी ने, हिमालय राज से जब देवी पार्वती जी का हाथ मांगा...
तब हिमालय राज क्रोध से आगबबूला हो उठे। उन्होंने कहा — “हे नट! हम मानते हैं कि आपकी कला से हम अभिभूत हुए, और हमने आपको वचन दे दिया... परन्तु यह कैसा दुस्साहस कि आप मेरी पुत्री पार्वती को मांग बैठे?”
देवी मेना का क्रोध
नट की बात सुनकर देवी मेनका का भी क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। वह बोलीं — “हे शैलराज, इस नट को अभी सभा से बाहर निकलवा दीजिए!”
हिमालय राज का असफल प्रयास
हिमालय राज ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि इस नट को पकड़कर बाहर कर दिया जाए। पर जैसे ही सिपाही पहुंचे, एक अद्भुत तेज देखकर भयभीत हो गए — कोई उस तेज के समक्ष खड़ा भी नहीं हो पाया।
त्रिमूर्ति के दर्शन
तभी वहाँ भगवान विष्णु साक्षात् दर्शन देते हैं — वही जिन्हें हिमालय राज नित्य पूजते थे। पुष्प जो उन्होंने पूजा में चढ़ाए थे, वे भी उनके चरणों में सुशोभित थे। साथ ही उन्होंने लाल वर्ण के चतुर्मुखी ब्रह्मा को वेदों के साथ देखा।
शिव लीला के दर्शन
भगवान शिव की लीला अत्यंत अद्भुत थी। हिमालयराज मोहित हो गए — उन्होंने स्वयं देवराज इंद्र को सभा सहित विराजमान देखा।
देवी पार्वती को शिव का साक्षात्कार
देवी पार्वती ने अपने हृदय में साक्षात भगवान शिव को देखा। भगवान बोले — “हे देवी, कोई वर मांगो।” पार्वती बोलीं — “हे प्रभु! आप ही मुझे पति रूप में मिलें — यही मेरी कामना है।” शिव बोले — “तथास्तु।” और अंतर्ध्यान हो गए।
हिमालयराज मोक्ष की ओर अग्रसर
अब हिमालय राज ने देखा — देवराज इंद्र की जगह स्वयं भगवान शिव देवी पार्वती के साथ विराजमान हैं। एक हाथ में डमरु, दूसरे में त्रिशूल, गले में नागों की माला — और मंद मंद मुस्कान लिए हुए। यह सब देखकर वे परमानंद में डूब गए।
भगवान शिव का अंतर्ध्यान
अंत में शिव अंतर्ध्यान हो गए। तभी हिमालय राज को बोध हुआ — यह नट और कोई नहीं स्वयं देवों के देव महादेव थे। वे उनकी माया से मोहित हो गए थे — पर अब उनका हृदय शुद्ध हो चुका था, और वे मोक्ष के अधिकारी बन चुके थे।
डिस्क्लेमर:
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