नीलकंठ संवाद भाग 6"चंद्रशेखर शिव: क्यों धारण किया चंद्रमा?
शिव के मस्तक पर विराजमान वह चंद्रमा, केवल एक शृंगार नहीं, बल्कि एक संपूर्ण ब्रह्मांडीय प्रतीक है।
वह चंद्र, जो कलाओं से पूर्ण है, शिव में समाहित होकर अपूर्णता की शरण लेता है।
यह प्रतीक हमें यह सिखाता है कि जो पूर्ण है, वह भी शिव के आगे झुकता है।
शिव को “चंद्रशेखर” कहा जाना केवल एक नाम नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की गति, चक्रों की सृष्टि, और समय की सीमाओं को दर्शाता है।
चंद्रमा, जो समय और ज्वार-भाटों का कारक है, शिव के जटाजूट में बंधकर यह संकेत देता है कि शिव समय से परे हैं।
वह कालातीत हैं, जो काल को अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
यह हमें यह भी स्मरण कराता है कि चंद्रमा के कलात्मक रूप को भी वैराग्य और तप में स्थान मिल सकता है।
शिव उस अंधकार के अधिपति हैं, जहां प्रकाश स्वयं उनका अनुचर है।
शिव का चंद्रधारण — मन के अस्थिरता और भावनात्मक ऊहापोह को साधने का संकेत है।
शिव को ध्यानस्थ देखो — चंद्रमा को धारण कर वे मन को स्थिर कर रहे हैं।
यह योग है, ध्यानअंतर्मुखी यात्रा
इसलिए जब तुम शिव को नमनशक्ति को नमन करते हो, जो चंद्रमा की चंचलता को भी अपने भीतर स्थिर कर लेती है।
🔱 हर हर महादेव! 🔱
शिव के मस्तक पर विराजमान वह चंद्रमा, केवल एक शृंगार नहीं, बल्कि एक संपूर्ण ब्रह्मांडीय प्रतीक है।
वह चंद्र, जो कलाओं से पूर्ण है, शिव में समाहित होकर अपूर्णता की शरण लेता है।
यह प्रतीक हमें यह सिखाता है कि जो पूर्ण है, वह भी शिव के आगे झुकता है।
शिव को “चंद्रशेखर” कहा जाना केवल एक नाम नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की गति, चक्रों की सृष्टि, और समय की सीमाओं को दर्शाता है।
चंद्रमा, जो समय और ज्वार-भाटों का कारक है, शिव के जटाजूट में बंधकर यह संकेत देता है कि शिव समय से परे हैं।
वह कालातीत हैं, जो काल को अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
यह हमें यह भी स्मरण कराता है कि चंद्रमा के कलात्मक रूप को भी वैराग्य और तप में स्थान मिल सकता है।
शिव उस अंधकार के अधिपति हैं, जहां प्रकाश स्वयं उनका अनुचर है।
शिव का चंद्रधारण — मन के अस्थिरता और भावनात्मक ऊहापोह को साधने का संकेत है।
शिव को ध्यानस्थ देखो — चंद्रमा को धारण कर वे मन को स्थिर कर रहे हैं।
यह योग है, ध्यानअंतर्मुखी यात्रा
इसलिए जब तुम शिव को नमनशक्ति को नमन करते हो, जो चंद्रमा की चंचलता को भी अपने भीतर स्थिर कर लेती है।
🔱 हर हर महादेव! 🔱
🔖 Disclaimer | अस्वीकरण
This article is a devotional and philosophical interpretation based on ancient scriptures and spiritual traditions related to Lord Shiva. It is intended to inspire faith, reflection, and reverence.
The content does not promote any form of superstition, nor does it guarantee specific results from any practices mentioned.
पाठकों से निवेदन है कि यदि वे ध्यान, साधना या कोई आध्यात्मिक अभ्यास करना चाहें, तो सदैव किसी योग्य गुरु के सान्निध्य में ही करें।
यह लेख केवल ज्ञानवर्धन एवं भक्ति हेतु है, इसे चिकित्सीय, मानसिक या आध्यात्मिक समाधान के रूप में न लें।
The readers are advised to seek proper guidance from a competent spiritual master (Guru) before engaging in any meditative or spiritual practice mentioned or inspired by this article.
May Lord Shiva guide your path with light, love, and liberation.
हर हर महादेव।
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