लंकेश जल

लंकेश जल



🔱 ॐ भगवान शिव और रावण की अद्भुत कथा ॐ 🔱



कैलाश पर्वत की गोद में जब देवों के देव महादेव विराजमान थे, तभी एक अनोखी कथा का सूत्रपात हुआ। लंका के पराक्रमी राजा रावण ने अपनी कठोर शिवभक्ति से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया, एवं फलस्वरूप भगवान शिव से आत्मलिंग का वरदान प्राप्त किया। किंतु विधि का विधान कुछ और ही था। मार्ग में स्वयं गणेशजी उनके साथ चल पड़े और हर पड़ाव पर “लंकेश, जल” कहकर उन्हें ठहरने पर विवश करने लगे। यही से प्रारंभ हुई वह कथा, जिसमें रावण की शक्ति, शिव की लीला और गणेशजी की बुद्धिमत्ता एक साथ प्रकट हुई।

कथा का विस्तार

  1. रावण ने कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर, आत्मलिंग का वरदान प्राप्त किया। शिव ने चेतावनी दी थी कि इसे मार्ग में कभी भी धरती पर नहीं रखना चाहिए।
  2. रावण आत्मलिंग लेकर कैलाश से प्रस्थान करता है। उसी समय भगवान विष्णु और देवताओं ने चिंता व्यक्त की— यदि यह लिंग लंका पहुँच गया तो देवताओं के लिए कठिनाई होगी।
  3. देवताओं के संकेत पर गणेशजी एक छोटे ब्राह्मण बालक का रूप धारण कर मार्ग में आ खड़े हुए।
  4. यात्रा के दौरान जब-जब रावण को  प्यास  लगी ,गणेशजी विनम्रता से बोले— “लंकेश, जल पीजिए तब तक, मैं आत्मलिंग को थामे रखता हूँ।”
  5. रावण ने भोलेपन में आत्मलिंग गणेशजी को पकड़ा दिया। लेकिन यात्रा के आखिरी क्षण में  रावण को लघुशंका महसूस हुई, फिर रावण ने भोलेपन में आत्मलिंग गणेशजी को पकड़ा दिया। लेकिन अबकी बार गणेशजी ने उसे धरती पर स्थापित कर दिया। लाख प्रयास करने पर भी रावण उसे हिला न सका।
  6. इस प्रकार आत्मलिंग धरती  पर स्थापित हो गया और आज भी वहाँ दर्शन-पूजन का केंद्र है।

यह कथा केवल शक्ति और भक्ति की नहीं, बल्कि बुद्धि और लीला की भी गाथा है। भगवान शिव ने आत्मलिंग का वरदान तो दिया, किंतु गणेशजी की बुद्धिमत्ता ने देवताओं का संतुलन बनाए रखा। आज भी जब भक्त “लंकेश जल” का स्मरण करते हैं, तो उसमें केवल संवाद नहीं, बल्कि शिव की अद्भुत योजना और गणेशजी की चतुराई छिपी होती है।

कथा से सीख

भगवान शिव, रावण और गणेशजी की यह कथा हमें गहन जीवन संदेश देती है।

🔹 केवल शक्ति प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसका सही उपयोग भी आवश्यक है।
🔹 बुद्धि और धैर्य से ही बड़े संकटों को टाला जा सकता है।
🔹 अहंकार चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, अंततः विनम्रता और सत्य के आगे टिक नहीं पाता।
🔹 भक्ति तभी सार्थक होती है जब उसमें संतुलन और विवेक भी हो।

🌺 शिव की लीला और गणेश की बुद्धि, यही जीवन का सच्चा मार्ग है। 🌺


⚠️ डिस्क्लेमर

इस ब्लॉग में वर्णित कथा पुराणों एवं लोकपरंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल धार्मिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक दृष्टिकोण से जानकारी प्रदान करना है। यहाँ दी गई सामग्री को किसी भी प्रकार के ऐतिहासिक या वैज्ञानिक प्रमाण के रूप में न लें। पाठक अपनी श्रद्धा एवं विवेक के अनुसार इसे ग्रहण करें।

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