भगवान शिव पूजन विधि एवं लिंगपुराण में सूर्य रथ का वर्णन

भगवान शिव पूजन विधि एवं लिंगपुराण में सूर्य रथ का वर्णन

भगवान शिव पूजन विधि

शिव की पूजा के समय शुद्ध होकर बैठना चाहिए। जनेऊ धारण कर शरीर शुद्धि करने के बाद पूजन सामग्री को क्रम से सजाएँ। सबसे पहले रक्षा का दीप प्रज्वलित करें और स्वस्तिक पाठ करें। तत्पश्चात गणेश और माता गौरी का पूजन करें।

यदि सामग्री उपलब्ध न हो तो नाम मंत्र से पूजन करें। और यदि नाम भी न हो तो केवल जल और श्रद्धा से पूजन करें।

संकल्प मंत्र

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। अद्य मम सर्वारिष्ट निरसन, सर्वपापक्षयार्थं, मनसेप्सितफलप्राप्त्यर्थं, श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फलप्राप्त्यर्थं, श्रीसाम्बसदाशिवप्रीत्यर्थं सावधानीपूर्वक श्री साम्बसदाशिवस्य पूजनं करिष्ये।

तदङ्गत्वेन कार्यस्य निर्विघ्नसिद्ध्यर्थम् आदौ गणेशाम्बिकयोः पूजनं करिष्ये।

गणेश स्मरण

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजंबूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय। लंबोदराय सकलाय जगद्धिताय।।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय। गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

गौरी स्मरण

नमो देव्यै महादेव्यै शिवाय सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै सत्या: प्रणताः स्म ताम्।।
त्वं वैष्णवी शक्तिरन्तवीर्या। विश्वस्य बीजं परमासि माया।।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्। त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः।।

पार्षद पूजन

गणेश और गौरी पूजन के बाद, नंदीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय, कुबेर और सर्प पूजन करें। तत्पश्चात शिवजी का आवाहन करें और बिल्वपत्र समर्पित करें।

श्री साम्बशिवाय नमः ध्यानार्थे विल्वपत्रं समर्पयामि।

अभिषेक विधि

शिवलिंग पर विभिन्न स्नान कराएँ और प्रत्येक स्नान के साथ संबंधित मंत्र बोलें।

  • स्नान मंत्र: श्री साम्बशिवाय नमः। स्नानीयं जलं समर्पयामि।
  • दुग्ध स्नान: श्री साम्बशिवाय नमः। पायः स्नानं समर्पयामि।
  • दधि स्नान: श्री साम्बशिवाय नमः। दधि स्नानं समर्पयामि।
  • घृत स्नान: श्री साम्बशिवाय नमः। घृत स्नानं समर्पयामि।
  • मधु स्नान: श्री साम्बशिवाय नमः। मधु स्नानं समर्पयामि।
  • शर्करा स्नान: श्री साम्बशिवाय नमः। शर्करा स्नानं समर्पयामि।
  • पंचामृत स्नान: श्री साम्बशिवाय नमः। पंचामृत स्नानं समर्पयामि।

लिंगपुराण में सूर्य रथ का वर्णन

लिंगपुराण में वर्णन है कि सूर्य का रथ सुवर्ण निर्मित है और उसमें तीन नाभि तथा पाँच अरो (स्पोक्स) होते हैं। यह ९,००० योजन चौड़ा और लंबा है। इसके सात घोड़े वेद के सात छन्दों — गायत्री, बृहती, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति — से बने हुए हैं।

सूर्य रथ ध्रुव से प्रेरित होकर ब्रह्मांड में परिभ्रमण करता है। इसमें १८० मंडलों की परिक्रमा का उल्लेख मिलता है। उत्तरायण और दक्षिणायन में सूर्य की गति एवं रश्मियों के विस्तार-संकोचन का विस्तार से उल्लेख किया गया है।

डिस्क्लेमर: यह सामग्री प्राचीन शास्त्रों और परंपरागत मान्यताओं पर आधारित है। पाठक इसे श्रद्धा और आस्था के अनुसार प्रयोग करें।

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