“शिव कथा: ईश्वर कौन है, वेद और उपनिषदों का ज्ञान – आध्यात्मिक मार्गदर्शन”

रवींद्रनाथ टैगोर का चित्र

ॐ अजय जी स्मरामि

चित्र रवींद्रनाथ टैगोर का, स्मरण ‘ॐ अजय जी स्मरामि’ लेखक अजय कुमार द्वारा शिव कथा और ईश्वर ज्ञान | आध्यात्मिक शिक्षाएँ

शिव कथा और ईश्वर ज्ञान

ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?

ईश्वर कौन है, जो लोग प्राप्त करते हैं, ईश्वर को समझने के लिए सबसे पहले प्रेम के प्रारूप को समझते हैं, पहले अपने को समझते हैं, फिर ईश्वर को समझते हैं, लेकिन उनके पूर्व प्रेम को ईश्वर से जोड़ कर समझते हैं।

प्रेम की परिभाषा

प्रेम एक प्रवाह है, एक दशा है, एक मनोभाव है, एक आनंद है, एक मिलन है, एक स्मृति है, एक स्पंदन है, एक भाव है। जब यह परमात्मा से जुड़कर एकाकार हो जाता है, तो वह महा प्रेम हो जाता है। प्रेम में मीरा ने जहर को भी अमृत कर दिया।

शास्त्रीय साधन

  • भक्ति योग
  • कर्म योग
  • ज्ञान योग

मृत्यु अटल है, इसलिए जीवन के उद्देश्य और इसके कारण को समझना आवश्यक है।

ईश्वर कहाँ रहता है?

ईश्वर का कोई पिता नहीं है, वह किसी का पुत्र नहीं है। ईश्वर ना पुरुष है, ना स्त्री, न ही उसका कोई स्वामी है। विवेकानंद के अनुसार मानव जाति के निर्माण में कितनी शक्तियों ने योगदान दिया और दे रही हैं।

सामाजिक संगठनों के मूल में विभिन्न इकाइयों को एकीकृत करने के लिए ईश्वरीय अधिकार प्राप्त होते हैं।

वैदिक ग्रंथ

एकमात्र मौजूदा वैदिक सामग्री वेद हैं, जो लगभग 15वीं शताब्दी से पांचवीं शताब्दी पूर्व तक मौखिक रूप से रचे गए थे। वैदिक देवता रूद्र एवं शिव से विकसित माने जाते हैं।

ऋग्वेद

  • परम पुरुष निस्वार्थता का प्रतीक है।
  • संपूर्ण संसार को नियंत्रित करता है।
  • मृत्यु निवारक मृत्युंजय मंत्र का वर्णन।
  • 33 देवियों और 25 नदियों का उल्लेख।

यजुर्वेद

ईश्वर शरीर विहीन और शुद्ध है। किसी ने अपनी आंखों से नहीं देखा।

सामवेद

गीतमय वेद, 1875 मंत्र शामिल हैं। रोग और व्याधियों से मुक्ति के लिए मंत्र।

अथर्ववेद

चिकित्सा विज्ञान और दर्शन के मंत्र शामिल। राष्ट्र की शांति और स्थायित्व में योगदान।

उपनिषद

उपनिषदों में मानव जीवन और भविष्य के गंभीर प्रश्नों को समझाने का प्रयास किया गया है। मुख्य विषय ब्रह्मविद्या का प्रतिपादन है।

श्रीमद् भागवत गीता

ईश्वर न भगवान हैं, न देवी, न देवता, न ब्रह्मा, विष्णु या महेश। गुरुकुल परंपरा के माध्यम से ज्ञान प्राप्त किया जाता था।

विद्यार्थियों को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ईश्वर ध्यान करना पड़ता था, उसके बाद यज्ञ, भोजन और अन्य कार्य।

रवींद्रनाथ टैगोर कविता

दरस घन जो न मिले भगवान्!
अब की बार के इस जीवन में,
मैं आपको पा सका तो यह बात याद बनकर रह गई सोच मन में।
भूल न पाओ, दर्द पाओ सपने में और शयन के समय।
उठो, बैठकर एक दिन पहले मेरी दुनिया की यात्रा के,
केवल दो दस्तावेज उलझी हुई ज्यादा धन में।
फिर भी मैं कुछ भी न पा सका, याद रहेगा यह मन में।
भूल न पाले, दर्द पाले सपने में और शयन के समय।
अलस में पड़कर, रूक गया मैं पथ पर,
घाटी में जो मैं सेज रखरखावं, यत्न कर निर्जन में,
अभी तो पूरी राह बाकी है। याद रहेगा मन में।
भूल न पाऊं, दर्द पाकर सपने देखना और शयन के समय।
निखरे हंसी मधुर-मधुर जो, पग-पग पर बांसुरी मुखर हो,
घर के उत्सव में बारहवीं साज सजाऊँ। वह नहीं बसा पाया।
दर्द एक यह रही मन में। भूल न पाले, दर्द पाले सपने में और शयन के समय।

— रवींद्रनाथ टैगोर

उपयुक्त कविता में टैगोर जी ने यह स्वीकार किया है कि जीवन का एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की पूजा ही है। वह ईश्वर है जो समय और स्थान से प्रभावित नहीं होता, सृष्टि से पहले भी वही था और सृष्टि के बाद भी रहेगा। ईश्वर सर्वज्ञ हृदय में बसे हुए हैं। अथर्ववेद में कहा गया है कि ईश्वर एक है और सभी देवता उसी में निवास करते हैं।

डिस्क्लेमर: यह ब्लॉग केवल ज्ञानवर्धन और आध्यात्मिक शिक्षा के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। पाठक व्यक्तिगत अनुभव और विश्वास के आधार पर इसे समझें। <

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