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भगवान शिव को भी गुरु की आवश्यकता क्यों पड़ी? – एक अद्वितीय सत्य

  भगवान शिव को भी गुरु की आवश्यकता क्यों पड़ी? – एक अद्वितीय सत्य  "गुरु बिनु भव निधि तरइ न कोई। जो विरंचि शंकर सम होई।।" (गुरु के बिना ब्रह्मा और शिव भी इस संसार सागर को पार नहीं कर सकते) भगवान शिव ने यह संदेश दिया कि: "चाहे तुम कितने ही महान क्यों न हो, बिना विनम्रता और शिष्यत्व के आत्मज्ञान नहीं होता।" शिव ने गुरु बनकर जितना सिखाया, उससे कहीं अधिक उन्होंने शिष्य बनकर ज्ञान की प्रतिष्ठा की। कार्तिकेय जी भगवान शिव को प्रणव की शिक्षा देते हए  प्रारंभिक भाव: भगवान शिव—जो स्वयं योग के आदि स्रोत हैं, जिन्हें आदियोगी और आदिगुरु कहा गया है—क्या उन्हें भी कभी गुरु की आवश्यकता पड़ी? यह प्रश्न जितना सरल दिखता है, उत्तर उतना ही गहरा है। क्योंकि शिव ही वह परम तत्व हैं, जो सृष्टि के आरंभ में मौन योगी के रूप में ध्यान में लीन थे, परंतु उन्होंने गुरु परंपरा की गरिमा बनाए रखने के लिए स्वयं भी कई अवसरों पर शिष्य की भूमिका निभाई।       1. शिव – स्वयं आदिगुरु भगवान शिव ने सबसे पहले सप्तऋषियों को ध्यान, तंत्र और योग की शिक्षा दी थी। वे मौन द्वारा ज्ञान द...

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